GSEB Solutions for ધોરણ ૧૦ Hindi

GSEB std 10 science solution for Gujarati check Subject Chapters Wise::

प्रभुजीके अंग अंगकी क्या विशेषता है?

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જવાબ : अंग अंगमै चंदनकी बास समायी है


कविने आत्मा और परमात्माका मिलन किसकी भांति बताया है ?

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જવાબ : सोने मै सुगंध की तरह


कवि क्यु बाती बनना चाहते है?

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જવાબ : ताकि दिन- रात ज्योत जलती रहे


अगर प्रभुजी दीपक है तो कवि क्‍या बनना चाहते है?

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જવાબ : अगर प्रभुजी दीपक है तो कवि बाती बनना चाहते है।


प्रभुजी तुम चंदन हम पानी – कवितामे कविने किसके बिचके संबंधके बारेमे बताया है?

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જવાબ : प्रभुजी तुम चंदन हम पानी – कवितामे कविने भक्त – भगवान के बिचके संबंधके बारेमे बताया है।


अगर प्रभु चंदन है तो कवि क्‍या है?

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જવાબ : अगर प्रभु चंदन है तो कवि पानी है।


अगर प्रभुजी बादल है तो कवि क्‍या है?

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જવાબ : अगर प्रभुजी बादल है तो कवि मोर है।


प्रभुजी तुम चंदन हम पानी – गद्यके कवि कौन है ?

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જવાબ : प्रभुजी तुम चंदन हम पानी – गद्यके कवि रैदास है।


कवि अपने और प्रभुजी के बादल और मोर होने की तुलना कीसके साथ करते है?

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જવાબ : कवि अपने और प्रभुजी के बादल और मोर होने की तुलना चांद और चकोर के साथ करते है।


संत रैदासजी कौनसे कवि के समकालिन कवि थे ?

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જવાબ : संत रैदासजी कवि कबीरके समकालिन कवि थे।


सोनेका महत्व कब ज्यादा हो जाता है?

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જવાબ : जब सोने से गहेने बनाये जाते है


अगर प्रभुजी मोती है तो कवि क्‍या है?

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જવાબ : अगर प्रभुजी मोती है तो कवि धागा है।


अगर प्रभुजी स्वामि है तो कवि क्‍या है?

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જવાબ : अगर प्रभुजी स्वामि है तो कवि दास है।


संत रैदास कहते हैं कि हे प्रभु, आपके प्रति मेरा समर्पणभाव.......

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જવાબ : चंदन के साथ पानी जैसा है।


सोने के साथ सुहागे का ...

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જવાબ : स्थायी संबंध होता हैं ।


प्रभु चंदन है, तो भक्त क्‍या है?

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જવાબ : प्रभु चंदन है, तो भक्त पानी है।


भक्त बाती बनकर क्‍या चाहता है?

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જવાબ : भक्त बाती बनकर जलना चाहता है।


सोने का महत्व कब बढ़ता है?

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જવાબ : जब सोने संग सुहागा मिलता है, तब सोने का महत्व बढ़ता है।


चातक पक्षी किसे देखता रहता है?

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જવાબ : चातक पक्षी चंद्रमा को देखता रहता है।


भक्त प्रभु के निकट होने की बात समझाने के लिए किसका सहारा लेते हैं?

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જવાબ : भक्त प्रभु के निकट होने की बात समझाने के लिए विभिन्‍न प्रतीकों का सहारा लेते हैं।


चंदन और पानी के उदाहरण द्वारा भक्त और भगवान के बीच का कौन-सा भाव बताया गया है?

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જવાબ : चंदन और पानी का उदाहरण द्वारा भक्त और भगवान के बीच का निकटता का भाव बताया गया हे।


मोती और धागा किस भाव का प्रतीक है?

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જવાબ : मोती और धागा एकाकार का प्रतीक है।


भक्त धागा है, तो प्रभु क्या है ?

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જવાબ : भक्त धागा है, तो प्रभु मोती है।


रैदास प्रभु को स्वामी मानकर खुद को क्या मानते है ?

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જવાબ : रैदास प्रभु को स्वामी मानकर खुद को दास मानते है।


प्रभु चंदन है, तो भक्त क्या है ?

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જવાબ : प्रभु चंदन है, तो भक्त पानी है।


सोने का महत्व कब बढ़ जाता है ?

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જવાબ : जब सुहागा मिलता है तब सोने का महत्व बढ़ जाता है।


प्रभु बादल है, तो भक्त क्या है ?

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જવાબ : प्रभु बादल है, तो भक्त मोर है।


प्रभुजी तुम चंदन हम........।

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જવાબ : पानी


जा कि जोति बरे.............|

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જવાબ : दिन-राती


प्रभुजी तुम स्वामी हम..........।

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જવાબ : दासा


मोती और धागा...........का प्रतीक है।

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જવાબ : एकाकार


प्रभु दीपक है तो भक्त...........है।

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જવાબ : बाती


भक्त किन-किन उदाहरणों के द्वारा समझाता है कि मैं प्रभु से निकट हूँ? अपने शब्दों में लिखिए।

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જવાબ : भक्त अपने आपको प्रभु के निकट होने की बात समझाने के लिए विभिन्‍न प्रतीकों का सहारा लेता है। इन उदाहरणों में चंदन-पानी, घन-मोर, दीपक-बातों, मोती-धागा तथा स्वामी-दास का समावेश है।


चंदन और पानी के द्वारा भक्त और भगवान की निकटता कैसे बताई गई है?

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જવાબ : चंदन को पानी के साथ घिसने पर वो लुगदी का रूप ले लेती है। इससे चंदन और पानी दोनों एकरूप हो जाते हैं। फिर उन्‍हें अलग नहीं किया जा सकता। इस तरह चंदन और पानी के द्वारा भक्त और भगवान की निकटता बताई गईं है।


मोती और थागे के द्वारा संत रैदास क्‍या कहना चाहते है?

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જવાબ : मोती और धागा दो अलग-अलग वस्तुएं हैं। लेकिन मोती जब धागे में पिरोया जाता है, तो दोनों एकाकार हो जाते हैं। संत रैदास मोती और धागे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि उनकी भक्ति आत्मा और परमात्मा यानी भक्त और भगवान के एकाकार हो जाने की है।


संत रैदासजी ने स्वयं को क्या-क्या कहकर संबोधित किया है ?

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જવાબ : संत रैदासजी ऐसे निष्ठावान भक्त है जो समर्पित भावना से अपने आराध्य देव से जुडा रहने में अपनी भक्ति की सार्थकता मानता है। संत रैदासजी अपने आपको पानी बताते हैं, जो प्रभु रूपी चंदन के साथ मिलकर सुगंधित हो जाता है। वे अपने आपको मोर कहते हैं, जो बादल को देखकर मस्ती से नाचने लगता है। संत रैदासजी उस चातक पक्षी की तरह है, जो चंद्रमा को सदा देखता रहता है। वे अपने आपको उस धागे के रूप में हैं, जो मोती में पिरोया जाता है। वे उस बाती के समान हैं, जो दीपक में जलती रहती है। संत रैदास खुद को सोने जैसी मूल्यवान धातु में मिलनेवाला सुहागा मानते हैं। संत रैदासजी अपने आपको प्रभु का एक तुच्छ सेवक मानते हैं।


संत रैदासजी भगवान को किन-किन नामों से संबोधित करते हैं ?

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જવાબ : संत रैदासजी भगवान को विभिन्‍न नामों से संबोधित करते हैं। वे भगवान को बादल कहते हैं, जिसे देखकर मोर मस्ती में आकर नाचने लगता है। वे भगवान को चंदन के नाम से संबोधित करते हैं, जिसके साथ रहकर पानी भी सुगंधित हो जाता है। वे ईश्वर को दीपक की उपमा देते हैं। वे भगवान को चंद्रमा कहते हैं, जिसे देखकर चातक पक्षी अघाता नहीं है। वे भगवान को मोती, सोना तथा स्वामी आदि कहते हैं।


संत रैदास ने भगवान के प्रति अपना भक्तिभाव किन-किन रूपों में व्यक्त किया हैं?

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જવાબ : संत रैदास अपने आपको भगवान से विभिन्न रूपों में जोड़े रहना चाहते हैं। वे कहते हैं कि यदि प्रभु चंदन हैं, तो वे पानी हैं जिसका उपयोग चंदन घिसते समय किया जाता है। भगवान यदि बादल हैं, तो वे मोर हैं, जो बादल को देखकर मस्ती में आकर नाचने लगता है। प्रभु चंद्रमा हैं, तो रैदास चातक हैं, जिसका मन चंद्रमा को देखकर नहीं भरता। यदि प्रभु दीपक हैं, तो वे उसकी बाती हैं, जो अपने आपको जलाती रहती है। भगवान मोती हैं, तो संत रैदास वह धागा हैं, जिसमें मोती पिरोया जाता है। प्रभु सोना हैं, तो रैदास सुहागा हैं। यदि भगवान स्वामी हैं, तो रैदास उनके दास बनने में अपने आपको धन्य मानते हैं। संत रैदास भगवान के एकनिष्ठ भक्त हैं।


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प्रभुजी तुम चंदन हम पानी


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