GSEB Solutions for ધોરણ ૧૦ Gujarati

GSEB std 10 science solution for Gujarati check Subject Chapters Wise::

किसकी कृपा से मीरां ने रामरतन धन पाया?

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જવાબ : सदगुरु


मीरां की सास मीरां को क्या कहती थी?

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જવાબ : कुलनाशिनी


राणा ने मीरां के लिए कया भेजा?

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જવાબ : विष का प्याला


किनके साथ बैठकर मीरां ने लोक-लाज खोई?

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જવાબ : साधु-संत


विषके प्यालेका मीराने क्‍या किया ?

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જવાબ : मीराने मगन होकर विष पी लिया


मीराने प्रेमकी बेल को किससे सींचा है?

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જવાબ : अपने आँसूसे


मीराका एकमात्र कौन है ?

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જવાબ : गिरधर गोपाल


मीरा क्या देखकर रोई है ?

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જવાબ : जगत


मीराको कौनसा धन मिल गया है ?

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જવાબ : रामरूपी रत्नका धन


मीराको रामरूपी धन किसकी कृपा से मिला ?

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જવાબ : अपने सतगुरु


मीराने लोकलाज क्यूँ खोई ?

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જવાબ : साधु संग बेठकर


मीरांबाई ने अपने सदगुरु की कृपा से ...

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જવાબ : रामरतन धन पाया।


मीरां को अपने सदगुरु पर अपार श्रद्धा है और ...

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જવાબ : वे उन्हें ही भगवदभक्ति प्राप्त करने का आधार मानती हैं।


मीरा क्या देखकर राजी होती है

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જવાબ : भगत


मीरा भवसागर पार करना कैसे चाहती है?

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જવાબ : सतकी नावमें बेठकर


राणाने मीराके लिये क्‍या भेजा ?

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જવાબ : विषका प्याला


जब मीरा पगमें घुंघरू बांधकर नाची तब लोगोंने क्या कहा ?

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જવાબ : मीरा पागल हो गयी है


मीरा अपनेआप को किसकी दासी मानने लगी है ?

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જવાબ : नारायणकी


जब मीरा पगमें घुंधरू बांधकर नाची तब उनकी सासने क्‍या कहा ?

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જવાબ : मीरा कुलनासी है


मीरां ने किनके साथ बैठकर लोक-लाज खोई?

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જવાબ : मीरां ने साधुसंतों के साथ बेठकर लोक-लाज खोई।


राणाजी को क्‍या पसंद नहीं था?

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જવાબ : श्रीकृष्ण के प्रेम में लीन होकर मीरां पैरों में घुँधरू बाँधकर नाचती थी, राणाजी को यह पसंद नहीं था।


मीरां की सास मीरां को क्‍या कहती थी?

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જવાબ : मीरां की सास मीरां को कुलनाशिनी कहती थी।


श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए मीरां ने किन-किन से रिश्ता तोड़ लिया?

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જવાબ : श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए मीरां ने अपने भाई, बंधु परिवारजनों ओर सगे-संबंधियों से रिश्ता तोड़ लिया।


मीरां के लिए सदगुरु किसके समान है?

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જવાબ : मीरां के लिए सदगुरु खेवनहार के समान है


मीरां ने किस के साथ बेठकर लोक-लाज खोई?

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જવાબ : साधु-संतों


मीरां कीस  को देखकर राजी होती थी?

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જવાબ : भगत


किस को देखकर मीरां को रोना आता था?

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જવાબ : जगत


मीरां अपने.......... प्रेमबेलि सींचती थी।

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જવાબ : आँसुओं से


मीरां के जन्म-जन्म की पूँजी क्या थी?

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જવાબ : रामरतन धन


सद्‌ की नाँव के खेनहार कोन है?

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જવાબ : सदगुरु


मीरां किस की दासी बन गई?

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જવાબ : नारायण


मीरां किस की भक्ति करती थी?

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જવાબ : श्रीकृष्ण


मीरांबाई को क्या मिल गया था?

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જવાબ : रामरतन धन


पैरों में घुँघरू देखकर मीरां की सास ने मीरां को क्या कहा?

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જવાબ : कुलनाशिनी


मीरां को विष का प्याला किसने भेजा?

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જવાબ : राणा


गिरधर गोपाल की भक्ति करते हुए मीरांबाई ने किस-किसका त्याग किया?

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જવાબ : मीरांबाई ने श्रीकृष्ण को अपने जीवन का एकमात्र आधार बना लिया था। इसके लिए उन्होंने अपना सर्वस्व त्याग दिया था। उन्होंने अपने भाई, बंधु, परिवार तथा नाते-रिश्ते के सभी लोगों का त्याग कर दिया था।


मीरां के 'रामरतन धन' की क्‍या विशेषताएं हें?

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જવાબ : मीरांबाई ने अपने सदगुरु की कृपा से 'रामरतन धन' नामक अमूल्य वस्तु प्राप्त की थी। मीरांबाई उसे अपने जन्म-जन्मांतर की पूँजी मानती हैं। इस धन की ये विशेषताएँ हैं कि यह न तो खर्च होता है और न कोई चोर इसे चुरा सकता है। इसमें रोज-रोज सवाई वृद्धि होती है।


मीरां इस भवसागर को किस प्रकार पार करना चाहती हैं?

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જવાબ : मीरांबाई को अपने सदगुरु पर अपार श्रद्धा है। वे उन्हें ही भगवद‌‌भक्ति प्राप्त कराने का आधार मानती हैं। वे सत्य (सच्चाई) की उस नाव पर बैठकर भवसागर पार करना चाहती हैं, जिसके खेवनहार उनके सदगुरु होंगे।


भक्ति के मार्ग में कौन-सा संकट आया? उससे मीरां कैसे पार हुईं?

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જવાબ : मीरां कृष्ण की भक्त थीं। कृष्ण के भक्ति में डूबकर मीराने सारी दुनियादारी भुला दी थी। मीरा कृष्ण की भक्ति में दीवानी हो गई थीं। राणाजी को यह सब पसंद नहीं आया। उन्होंने मीरा को जान से मारने के लिए जहर से भरा हुआ प्याला उनके पास भेजा। मीरां ने बिना विचलित हुई यह जहर हँसते-हँसते पी लिया। पर इस जहर का मीरां पर कोई असर नहीं हुआ।


कृष्ण की भक्ति में डूबने से मीरां को कौन-से दुःख उठाने पड़े?

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જવાબ : मीरां कृष्ण के प्रेम में पड़कर संसार से विरक्त हो गई थीं। उन्होंने संसार के नियमों और मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की। मीरा को पैरो में घुंघरू बाँधकर नाचते देख लोगों ने उन्हें पागल तक कहा। मीरा साधु-संतों के साथ बेठी देखकर लोगों ने उनकी हँसी उड़ाई। सास को उनकी भक्ति भावना बिलकुल अच्छी नहीं लगी। उन्होंने उनका 'कुलनाशिनी' कहकर तिरस्कार किया। राजा को मीरां का रंग-ढंग राज परिवार के खिलाफ लगा ओर उन्होंने मीरां को जहर देकर मारने की कोशिश की। इस प्रकार कृष्णभक्ति में डूबने पर मीरां को तरह-तरह के दुःख उठाने पड़े।


मीरां के पदों के आधार पर सदगुरु की महिमा का वर्णन कीजिए।

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જવાબ : गुरु का महत्व सभी ने माना है। मीरांबाई ने सदगुरु को बहुत महत्व दिया है। मीरां सांसारिक जीवन को त्यागकंर अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण की भक्ति पाकर मगन हैं वे इसे रत्न की उपमा देती हैं। वे इस अनमोल वस्तु को प्राप्त कराने का श्रेय अपने सदगुरू को ही देती हैं और कहती हैं कि 'रामरतनरूपी वन उन्हें उनके सदगुरु की कृपा से प्राप्त हुआ है। सदगुरु की कृपा इस खंसाररूपी सागर में नाव के समान है। इस नाव में बैठकर मीरां सुरक्षित रूप से इस भवसागर को पार करने के प्रति निश्चिंत हैं, क्योंकि इस नाव के खेवनहार उनके सदगुरु होंगे। इस प्रकार मीरां के पद में सदगुरु को बहुत महत्व दिया गया हे।


भक्ति में लीन मीरां को लोग क्या-क्या कहते थे? क्यों?

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જવાબ : भक्ति में लीन मीरां को देख लोग तरह-तरह की बाते करते थेमीरांबाई श्रीकृष्ण के प्रेम में रँगते-रँगते संसार के प्रति विमुख हो गई थीं। उन्होंने सांसारिकता को बिलकुल भुला दिया था। मीरा श्रीकृष्ण के प्रेम में पेरों में धुँघरू बाँधकर नाचती थीं। यह देखकर लोग उन्हे 'पागल' कहने लगे थे। वे साधुओं की संगति में बैठती थीं। यह देखकर लोग उनकी खिल्ली उड़ाया करते थे। उनकी सास और राणा को मीरां का भक्तिभाव बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। इसलिए सास उन्हें 'कुलनाशिनी' कहती थी और राणा को लगता था कि ऐसे प्राणी को जीवित ही नहीं रहना चाहिए। इसलिए उन्होंने मीरां को जान से मारने के लिए विष का प्याला ही भेज दिया था।

इस प्रकार भक्तिभाव में लीन मीरां को लोग तरह-तरह से संबोधित करते थे।


जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सबै खोवायो।

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જવાબ : मीरांबाई अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण के प्रेम की दीवानी हैं। उन्हें प्राप्त करने के लिए उन्होंने अपने भाई, बंधु, परिवारजनों और सभी सगे-संबंधियों से रिश्ता तोड़ लिया है। उन्होंने तरह-तरह की बदनामियाँ सही हैं और लाज-शर्म सबको तिलांजलि दे दी है। कहने का अर्थ यह है कि उन्होंने अपना सर्वस्व गँवाकर अपने जन्म-जन्मांतर की राम नामरूपी अमूल्य पूँजी प्राप्त की है। यह ऐसी पूँजी है जिसका कोई जोड़ नहीं है।


सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तरि आयो।

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જવાબ : सच्चाई मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से अपने आराध्य देव का ध्यान करे और उसे सदगुरु का सहयोग प्राप्त हो, तो व्यक्ति को भवसागर से मुक्ति पाना कठिन नहीं है। मीरांबाई को अपने सदगुरु पर अटूट विश्वास है। उनके लिए सद्गुरु की कृपा इस संसाररूपी महासागर में नाव के समान है। इस नाव के सहारे वे सुरक्षितरूप से इस भवसागर को पार कर लेगी, इस बात का उन्हें पूरा विश्वास है।


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मीरा के पद


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