GSEB Solutions for ધોરણ ૧૦ Hindi

GSEB std 10 science solution for Gujarati check Subject Chapters Wise::

पंडित शादीराम अपना ऋण क्‍यों नहीं उतार पाते थे?

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જવાબ : बचे हुए पैसे किसी--किसी तरह खर्च हो जाते थे।


शादीराम पुरानी पत्रिकाएँ बेचते नहीं थे, क्योंकि ...

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જવાબ : उनके रोते हुए बच्चे उनकें चित्रों को देखकर चुप हो जाते थे।


सदानंद के कहने पर शादीराम ने पत्रिकाओं के चित्रों का क्या किया?

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જવાબ : अलबम बनाया


सदानंद का मन प्रसन्नता से नाच उठा, क्‍योंकि...

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જવાબ : मारवाड़ी सेठ ने अलबम खरीद लिया था।


पंडितजी मासिक पत्रिकाएं रद्दी में क्यों नहीं बेच देते थे ?

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જવાબ : किताबों में बने चित्र रोते बच्चों को चुप कराने के काम आते थे


पंडीत शादीराम आह भरकर क्या सोचने लगे ?

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જવાબ : क्या यह ऋण कभी सिर से न उतरेगा ?


लालाजीने पंडितजी को क्‍या करने को कहा ?

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જવાબ : किताबों में बनी अच्छी अच्छी तसवीरों को अलग छांटने को


पंडित शादीराम के पैसे किसमे खर्च हो गए ?

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જવાબ : अपने बेटे की दवाई में


शादीरामने पैसा-पैसा बचाकर कितने पैसे जोड़ लिए थे ?

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જવાબ : अस्सी रुपए


लाला ने पंडितजी की अलमारी में क्‍या देखा ?

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જવાબ : कई सौ बंगला, हिन्दी और अंग्रेजी मासिक पत्रिकाएँ


मासिक पत्रिकाएं किसकी थी ?

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જવાબ : पंडितजी के बडे भाई की


पंडित शादीराम क्या चाहते थे ?

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જવાબ : लाला सदानंद का रुपया अदा कर देना


शादीराम में लाला के सामने सिर उठाने का साहस क्‍यों नहीं था ?

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જવાબ : लाला कभी अपने पैसे नहीं मागता था ?


शादीराम को लाला को कितने पैसे देने थे?

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જવાબ : 500 रुपए


अलबम खरीदने के लिए किसका पत्र आया ?

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જવાબ : कलकते के मारवाड़ी सेठ का


लालाजी अच्छी तसवीरों का क्‍या करना चाहते थे ?

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જવાબ : अलबम बनाना चाहते थे


होश आनेपर पंडितजी को लालाने क्‍या कहा ?

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જવાબ : यह अलबम मैंने सेठ से मँगवा लिया है


पंडितजी के सिरहाने रखी चुभती हुई चीज क्या थी ?

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જવાબ : पंडितजी का भेजा हुआ अलबम


पंडित शादीराम बीमार लाला के लिए क्या करते थे ?

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જવાબ : उनके लिए रात-दिन माला फेरा करते थे


पंडितजी किस बात से बहुत प्रसन्न थे?

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જવાબ : ये सोचकर की उन्होने लाला का ऋण उतार दिया है


पंडितजी को लाला के सिरहाने के नीचे क्या रखा हुआ लगा ?

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જવાબ : कोई चुभती हुई चीज


लालाजी अच्छी तसवीरों का अलबम बनाकर क्या करना चाहते थे ?

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જવાબ : पंडितजी की तरफ़से विज्ञापन देना चाहते थे


पंडितजी से अलबम खरीदनेवाला कौन था?

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જવાબ : लाला सदानंद


पंडित शादीराम की अलमारी में क्‍या था?

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જવાબ : पत्रिकाएँ


अलबम भेजने के लिए किसने पत्र लिखा था?

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જવાબ : कलकत्ते के मारवाडी शेठ ने


शादीराम पुरानी पत्रिकाएँ...

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જવાબ : बेचते नहीं थे।


अलबम के पाँचसौ रुपये किसे मिले ?

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જવાબ : पंडित शादीराम को


कलकत्ते के मारवाडी सेठ ने पत्र क्यों लिखा?

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જવાબ : अलबम भेजने के लिए


वह करवट आदमी की नहीं थी तो किसकी थी?

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જવાબ : भाग्य


शादीराम के विल में क्‍या नहीं था?

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જવાબ : शांति


शादीराम के दिल में क्या न थी?

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જવાબ : शांति


किस को पढ़ने का शौक था?

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જવાબ : शादीराम के बड़े भाई


पंडित शादीराम के घर में पड़ी पत्रिकाएँ किस चित्र की थीं?

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જવાબ : सचित्र


पत्रिकाओं के चित्र देखकर बच्चों के क्या थम जाते?

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જવાબ : आँसू


पंडित शादीराम को कोयले की खान में क्या मिलने की आशा न थी?

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જવાબ : हीरा


पंडित शादीराम छाँटे गए चित्र को इस तरह देखते हैं मानो उनसे हर एक किस का नोट हो?

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જવાબ : दस-दस


यह किसी आदमी की करवट न थी, यह.........करवट थी

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જવાબ : भाग्य


सदानंद के कहने पर शादीराम ने पत्रिकाओं के चित्रों का क्या बनाया?

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જવાબ : अलबम


शादीराम को सदानंद के अंतिम समय पर उनके सिरहाने से क्या मिला?

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જવાબ : अलबम


लाला सदानंद ने पुरानी पत्रिकाओं से शादीराम को क्या करने की सलाह दी?

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જવાબ : लाला सदानंद ने शादीराम को पुरानी पत्रिकाओं से अच्छी-अच्छी तस्वीरें अलग छाँट लेने की सलाह दी।


लाला सदानंद की बीमारी के समय पंडित शादीराम किस तरह सेवा करते थे?

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જવાબ : पंडित शादीराम लाला सदानंद के लिए दिन-रात माला फेरते थे। यही उनकी औषधी थी जिसे वे अपनी आत्मा की पूरी शक्ति और मन से कर रहे थे।


लाला सदानंद ने शादीराम से अपने रुपयों का तगादा क्यों नहीं किया?

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જવાબ : लाला सदानंद ने शादीराम से उसने रुपयों का कभी तगादा नहीं किया, क्योंकि वे उनकी विवशता जानते थे।


लाला सदानंद के सिरहाने रखी सख्त चीज क्‍या थी?

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જવાબ : लाला सदानंद के सिरहाने रखी सख्त चीज वही अलबम था जो किसी सेठ ने नहीं, बल्कि स्वयं लाला सदानंद ने खरीदा था।


'अलबम सेठ से मैंने मंगवा लिया है।' ऐसा सदानंद ने शादीराम से क्‍यों कहा?

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જવાબ : शादीराम ने सदानंद के सिरहाने अलबम देख लिया था। इसलिए वह अलबम छीनकर सदानंद ने शादीराम से कहा कि 'अलबम सेठ से मैंने मँगवा लिया है' ताकि उन्हें शंका न हो।


पंडित शादीराम के बचाए हुए अस्सी रुपये किसमें खर्च हो गए?

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જવાબ : पंडित शादीराम के बचाए हुए अस्सी रुपये लड़के की बीमारी में खर्च हो गए।


पंडित शादीराम पुरानी पत्रिकाएँ क्‍यों नहीं बेच देते थे?

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જવાબ : पंडित शादीराम के स्वर्गीय बड़े भाई के समय की पत्रिकाओं को देखकर रोते बच्चों के आँसू थम जाते थे। इसलिए पंडित शादीराम पुरानी पत्रिकाएँ नहीं बेचते थे।


पंडित शादीराम कर्ज अदा करने के लिए क्यों बेचैन थे?

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જવાબ : पंडित शादीराम ने कई साल पहले लाला सदानंद से कर्ज लिया था। पर भले मानस लाला सदानंद कभी उनसे पैसों का तकादा नहीं करते थे। पंडित शादीराम पेट काट-काटकर पैसे बचाते, फिर भी कोई--कोई काम निकल आता कि सारा पैसा उड़ जाता। इस कारण शादीराम कर्ज अदा करने के लिए बेचैन थे।


लाला सदानंद ने शादीराम की समस्या का क्‍या हल निकाला ?

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જવાબ : कर्ज को लेकर परेशान शादीराम की समस्या का हल निकालने के लिए लाला सदानंद ने शादीराम के घर पर पड़ी सुंदर तस्वीरोंवाली पत्रिकाओं से अच्छी-अच्छी तस्‍वीरें छाँटने के लिए उनसे कहा। इन तस्वीरों का अलबम बनाकर विज्ञापन देने पर कलकत्ते के मारवाड़ी सेठ ने यत्र. लिखकर यह अलबम खरीद लिया। इस तरह लाला सदानंद ने शादीराम की समस्या का हल निकाला।


शादीराम ने अपना कर्ज कैसे चुकाया?

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જવાબ : कर्ज को लेकर परेशान शादीराम को कर्ज से मुक्त करने के लिए लाला सदानंद ने शादीराम के घर पर पड़ी सुंदर तस्वीरोंवाली पत्रिकाओं से अच्छी-अच्छी तस्वीरें छाँटने के लिए उनसे कहा। इन तस्वीरों का अलबम बनाकर विज्ञापन देने पर कलकत्ते के मारवाड़ी सेठ ने पत्र लिखकर यह अलबम खरीद लिया। उन पैसों से शादीराम ने अपना कर्ज चुका दिया।


पंडित शादीराम लाला सदानंद से क्‍यों न कह सके कि वे झूठ बोल रहे हैं?

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જવાબ : रोगी लाला सदानंद के सिरहाने अलबम देखकर पंडित शादीराम समझ गए कि किसी सेठ ने नहीं बल्कि लाला सदानंद ने खरीदा था। होश आने पर लाला सदानंद ने कहा कि सेठ से उन्होंने अलबम मँगवा लिया। इस पर पंडित शादीराम समझ गए कि लाला सदानंद झूठ बोल रहे हैं लेकिन पहले से भी अधिक सज्जन, अधिक उपकारी और उच्च मनुष्य से वे यह कह न पाए।


शादीराम का ऋण उतरने की बजाय दुगुना क्‍यों हो गया ?

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જવાબ : पंडित शादीराम की कर्ज मुक्ति के लिए अलबम बनवाकर लाला सदानंद ने मारवाडी सेठ को बिकवा दिया। इन पैसों से पंडित शादीराम ने लाला सदानंद का कर्ज उतार दिया। जब पंडित शादीराम ने जाना कि अलबम मारवाडी सेठ के बजाय लाला सदानंद ने खरीदा है, तब वे समझ गए कि पहले का कर्ज तो अदा नहीं हुआ और इस अलबम के लिए दिए गए पैसों के रूप में कर्ज बढ़कर दुगुना हो गया।


पंडित शादीराम के दिल में क्‍यों शांति नहीं थी?

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જવાબ : पंडित शादीराम गरीब थे, पर दिल के बुरे न थे। उन्हें अपने यजमान लाला सदानंद से लिया गया कर्ज बोझ के समान लगता था। वे चाहते थे कि जिस तरह भी हो, उनका रुपया अदा कर दें। वैसे लाला सदानंद को इस रकम की ज्यादा परवाह न थी। वे चाहते थे कि शादीराम रुपए देने की कोशिश न करें। उन्होंने इसके लिए कभी तकादा तक नहीं किया था, पर शादीराम सोचते थे कि वे कुछ नहीं कहते, तो क्या हुआ, इसका मतलब यह थोड़े ही है कि मैं भी निश्चित हो जाऊँ! इसीलिए शादीराम के दिल में शांति न थी।


पंडित शादीराम खुशी से क्‍यों झूमने लगे?

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જવાબ : लाला सदानंद ने पंडित शादीराम से अलबम बनाने के लिए पत्रिकाओं से अच्छी तसवीरें छांटने के लिए कहा, तो उन्हें विश्वास नही हुआ कि उनका यह प्रयल सफल होगा। लेकिन जब सौ-दो सौ बढिया चित्र जमा हो गए, तो उन्हें देखकर वे उछल पड़े। वे चित्रों की और इस तरह देखते जैसे हर चित्र दस-दस का नोट हो। यद्यपि आशा अभि दूर थी, पर लाला सदानंद की दी हुई आशा पर अब उन्हें पूरा विश्वास हो गया। इसलिए पंडित शादीराम भविष्य की कल्पना करते हुए खुशी से झूमने लगे।


लाला सदानंद शादीराम से रुपए क्‍यों नहीं लेना चाहते थे?

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જવાબ : पंडित शादीराम गरीब थे, पर दिल के बुरे नहीं थे। वे लाला सदानंद के कर्ज के रुपए अदा करने का पूरा प्रयास करते थे, पर किसी--किसी कारण से इकट्ठा किया गया रुपया उन्हें खर्च कर देना पडता था। इसलिए उन्हें मन मारकर रह जाना पड़ता था। लाला सदानंद अपने पुरोहित शादीराम की विवशता को जानते थे। उन्हें इस रकम की परवाह न थी और चाहते थे कि शादीराम कर्ज के रुपए देने का प्रयास न करे। इसीलिए उन्होंने शादीराम को कभी तकादा भी नहीं किया था।


लाला सदानंद के चरित्र पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।

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જવાબ : लाला सदानंद एक सज्जन, भले मानस, संवेदनशील और दूसरो की मदद करनेवाले व्यक्ति हैं। उन्होंने कई वर्ष पहले अपने पुरोहित पंडित शादीराम को कर्ज दिया था, लेकिन इतने दिनों बाद भी उन्होंने शादीरामसे पैसों का कभी तकादा नहीं किया, बल्कि उनकी विवशता को देखते हुए वे चाहते थे कि वे रुपए न लौटाएँ तो अच्छा हो। दूसरों की मदद करने में भी वे पीछे नहीं रहते। पंडित शादीराम की सहायता करने के उद्देश्य से ही उन्होंने उनसे पत्रिकाओं से अच्छे चित्र छाँटकर जमा करने के लिए कहा था। उन्होंने चित्रों से स्वयं अलबम बनाया, विज्ञापन दिया और किसी सेठ के नाम से पत्र भेजकर अलबम स्वयं अपने पास रखकर शादीराम को रुपए दिलाए। यह सब उन्होंने इसलिए किया, ताकि शादीराम के आत्मसम्मान पर आँच न आए और उन्हें यह लगे कि रुपए उन्हें अपनी चीज के मूल्य के रूप में मिले हैं, दान में नहीं। इतना ही नहीं, अपने घर में पंडित शादीराम के हाथ में अलबम देखकर वे उनका विश्वास बनाए रखने के लिए झूठ बोलते हैं कि 'अलबम अब उन्होंने सेठ साहब से मँगवा लिया है।'


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