જવાબ : अंग अंगमै चंदनकी बास समायी है
જવાબ : सोने मै सुगंध की तरह
જવાબ : ताकि दिन- रात ज्योत जलती रहे
જવાબ : अगर प्रभुजी दीपक है तो कवि बाती बनना चाहते है।
જવાબ : प्रभुजी तुम चंदन हम पानी – कवितामे कविने भक्त – भगवान के बिचके संबंधके बारेमे बताया है।
જવાબ : अगर प्रभु चंदन है तो कवि पानी है।
જવાબ : अगर प्रभुजी बादल है तो कवि मोर है।
જવાબ : प्रभुजी तुम चंदन हम पानी – गद्यके कवि रैदास है।
જવાબ : कवि अपने और प्रभुजी के बादल और मोर होने की तुलना चांद और चकोर के साथ करते है।
જવાબ : संत रैदासजी कवि कबीरके समकालिन कवि थे।
જવાબ : जब सोने से गहेने बनाये जाते है
જવાબ : अगर प्रभुजी मोती है तो कवि धागा है।
જવાબ : अगर प्रभुजी स्वामि है तो कवि दास है।
જવાબ : चंदन के साथ पानी जैसा है।
જવાબ : स्थायी संबंध होता हैं ।
જવાબ : प्रभु चंदन है, तो भक्त पानी है।
જવાબ : भक्त बाती बनकर जलना चाहता है।
જવાબ : जब सोने संग सुहागा मिलता है, तब सोने का महत्व बढ़ता है।
જવાબ : चातक पक्षी चंद्रमा को देखता रहता है।
જવાબ : भक्त प्रभु के निकट होने की बात समझाने के लिए विभिन्न प्रतीकों का सहारा लेते हैं।
જવાબ : चंदन और पानी का उदाहरण द्वारा भक्त और भगवान के बीच का निकटता का भाव बताया गया हे।
જવાબ : मोती और धागा एकाकार का प्रतीक है।
જવાબ : भक्त धागा है, तो प्रभु मोती है।
જવાબ : रैदास प्रभु को स्वामी मानकर खुद को दास मानते है।
જવાબ : प्रभु चंदन है, तो भक्त पानी है।
જવાબ : जब सुहागा मिलता है तब सोने का महत्व बढ़ जाता है।
જવાબ : प्रभु बादल है, तो भक्त मोर है।
જવાબ : पानी
જવાબ : दिन-राती
જવાબ : दासा
જવાબ : एकाकार
જવાબ : बाती
જવાબ : भक्त अपने आपको प्रभु के निकट होने की बात समझाने के लिए विभिन्न प्रतीकों का सहारा लेता है। इन उदाहरणों में चंदन-पानी, घन-मोर, दीपक-बातों, मोती-धागा तथा स्वामी-दास का समावेश है।
જવાબ : चंदन को पानी के साथ घिसने पर वो लुगदी का रूप ले लेती है। इससे चंदन और पानी दोनों एकरूप हो जाते हैं। फिर उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। इस तरह चंदन और पानी के द्वारा भक्त और भगवान की निकटता बताई गईं है।
જવાબ : मोती और धागा दो अलग-अलग वस्तुएं हैं। लेकिन मोती जब धागे में पिरोया जाता है, तो दोनों एकाकार हो जाते हैं। संत रैदास मोती और धागे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि उनकी भक्ति आत्मा और परमात्मा यानी भक्त और भगवान के एकाकार हो जाने की है।
જવાબ : संत रैदासजी ऐसे निष्ठावान भक्त है जो समर्पित भावना से अपने आराध्य देव से जुडा रहने में अपनी भक्ति की सार्थकता मानता है। संत रैदासजी अपने आपको पानी बताते हैं, जो प्रभु रूपी चंदन के साथ मिलकर सुगंधित हो जाता है। वे अपने आपको मोर कहते हैं, जो बादल को देखकर मस्ती से नाचने लगता है। संत रैदासजी उस चातक पक्षी की तरह है, जो चंद्रमा को सदा देखता रहता है। वे अपने आपको उस धागे के रूप में हैं, जो मोती में पिरोया जाता है। वे उस बाती के समान हैं, जो दीपक में जलती रहती है। संत रैदास खुद को सोने जैसी मूल्यवान धातु में मिलनेवाला सुहागा मानते हैं। संत रैदासजी अपने आपको प्रभु का एक तुच्छ सेवक मानते हैं।
જવાબ : संत रैदासजी भगवान को विभिन्न नामों से संबोधित करते हैं। वे भगवान को बादल कहते हैं, जिसे देखकर मोर मस्ती में आकर नाचने लगता है। वे भगवान को चंदन के नाम से संबोधित करते हैं, जिसके साथ रहकर पानी भी सुगंधित हो जाता है। वे ईश्वर को दीपक की उपमा देते हैं। वे भगवान को चंद्रमा कहते हैं, जिसे देखकर चातक पक्षी अघाता नहीं है। वे भगवान को मोती, सोना तथा स्वामी आदि कहते हैं।
જવાબ : संत रैदास अपने आपको भगवान से विभिन्न रूपों में जोड़े रहना चाहते हैं। वे कहते हैं कि यदि प्रभु चंदन हैं, तो वे पानी हैं जिसका उपयोग चंदन घिसते समय किया जाता है। भगवान यदि बादल हैं, तो वे मोर हैं, जो बादल को देखकर मस्ती में आकर नाचने लगता है। प्रभु चंद्रमा हैं, तो रैदास चातक हैं, जिसका मन चंद्रमा को देखकर नहीं भरता। यदि प्रभु दीपक हैं, तो वे उसकी बाती हैं, जो अपने आपको जलाती रहती है। भगवान मोती हैं, तो संत रैदास वह धागा हैं, जिसमें मोती पिरोया जाता है। प्रभु सोना हैं, तो रैदास सुहागा हैं। यदि भगवान स्वामी हैं, तो रैदास उनके दास बनने में अपने आपको धन्य मानते हैं। संत रैदास भगवान के एकनिष्ठ भक्त हैं।
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