જવાબ : देवनागरी
જવાબ : माँ का उपदेश
જવાબ : पिताजी के
જવાબ : ग्यारह
જવાબ : उनकी दादाजी की बहनने
જવાબ : लखनऊ कांग्रेस में जाने की
જવાબ : दादीजी और पिताजीने
જવાબ : शाहजहांपुर में
જવાબ : उनकी माताजी ने
જવાબ : उनकी माताजी के प्रोत्साहन और सदव्यवहारने
જવાબ : माताजी और गुरुदेव को
જવાબ : वकालतनामे पर हस्ताक्षर करने को
જવાબ : उनके विवाह का
જવાબ : वह बहुत प्रसन्न हुई थी14
જવાબ : किसी की प्राणहानी न हो
જવાબ : मिठार्ई बांटी थीं
જવાબ : अंतिम समयमें मेरा मन विचलित न हो
જવાબ : अपनी माताजी के चरणों को प्रणाम करके परमात्मा का स्मरण करते हुए
જવાબ : उनकी दृष्टि से वह धर्मविरुद्ध था।
જવાબ : उनके द्वारा किसी की प्राणहानि न हो।
જવાબ : अपनी माँ की सेवा का अवसर नहीं मिलेगा।
જવાબ : शाहजहाँपुर
જવાબ : श्री सोमदेव
જવાબ : मेजिनी
જવાબ : मिठाई
જવાબ : सखी- सहेलियों
જવાબ : धर्मविरुद्ध
જવાબ : परमात्मा
જવાબ : देवनागरी
જવાબ : बिस्मिल की माताजी का सबसे बड़ा आदेश था कि बिस्मिल के द्वारा किसी की प्राणहानि न हो।
જવાબ : बिस्मिल की एकमात्र इच्छा एक बार श्रद्धापूर्वक अपनी माँ के चरणों की सेवा करके अपने जीवन को सफल बनाने की थी।
જવાબ : वकील साहब ने बिस्मिल को वकालतनामे में उनके पिताजी के हस्ताक्षर करने के लिए कहा तो यह काम उन्हें धर्मविरुद्ध लगा। इसलिए उन्होंने वकालतनामे में दस्तखत नहीं किए।
જવાબ : बिस्मिल की माताजी ने जब पढ़ना-लिखना सीख लिया था और वे देवनागरी पुस्तकें पढ़ने लगीं, तब उनके विचार पहले की अपेक्षा अधिक उदार हो गए।
જવાબ : बिस्मिल अपनी माताजी की दया से देशसेवा में संलग्न हो सके।
જવાબ : बिस्मिल को विश्वास था कि इतिहास में उनकी माँ के नाम का उल्लेख होगा।
જવાબ : बिस्मिल की माँ ने देवनागरी पढ़ना शुरू किया।
જવાબ : धर्म की रक्षा करते हुए गुरु गोविदसिह के पुत्रों ने प्राण त्यागे।
જવાબ : बिस्मिल की एकमात्र इच्छा थी एक बार अपनी माँ के चरणों की अश्रद्धापूर्वकत सेवा करके अपने जीवन को सफल बनाना। पर उनकी यह इच्छा पूरी होती नहीं दिखाई दे रही थी, क्योंकि उन्हें फाँसी की सजा हुई थी और वे जेल में थे।
જવાબ : अंतिम समय के लिए बिस्मिल अपनी माँ से यह वरदान माँगते हैं कि वे उन्हें ऐसा वर दे कि अंतिम समय भी उनका (बिस्मिल का) हृदय किसी प्रकार विचलित न हो और वे माँ के चरण-कमलों को प्रणाम कर परमात्मा का स्मरण करते हुए शरीर त्याग कर सकें।
જવાબ : गुरु गोविदस्सिहजी के पुत्रों ने गुरु के नाम पर धर्म की रक्षा करते हुए अपने प्राण त्यागे थे। जब गुरु गोविंद सिहजी की पत्नी ने यह खबर सुनी तो उनका सिर गर्व से ऊँचा हो गया और उन्होंने इस खुशी में लोगों में मिठाई बाँटी।
જવાબ : बिस्मिल की माँ पहले पढ़ी-लिखी नहीं थी। बिस्मिल के जन्म के पाँच-सात साल बाद उन्होंने हिन्दी पढ़ना शुरू किया था। मुहल्ले की अपने घर पर आनेवाली शिक्षित सखी-सहेलियों से वे अक्षर-बोध करती थीं। घर के काम-काज से जो समय मिल जाता, उसी में उनका पंढ़ना-लिखना होता था। इस तरह अपने परिश्रम के बल पर थोड़े दिनों में ही वे देवनागरी पुस्तकों का अध्ययन करने लगीं थीं।
જવાબ : बिस्मिल आरंभ में बड़े धृष्ट बालक थे। पिता और दादी से उनकी कभी नहीं बनती थी। उनमें संस्कार भरे तो उनकी माँ ने। माँ के उपदेश बिस्मिल के लिए देववाणी के समान थे। माँ ने ही उनमें दया और सेवा की भावना जगाई। माँ के प्रोत्साहन से ही बिस्मिल में धर्म के प्रति रुचि उत्पन्न हुई। कभी स्नेह से और कभी हल्की ताड़ना से माँ से उनमें तरह-तरह के सुधार किए। माँ ने पुत्र को आर्यसमाज में प्रवेश करने का समर्थन किया। इतना ही नहीं समाजसेवा की समितियों में भी पुत्र को कार्य करने की प्रेरणा दी। लखनऊ कांग्रेस में शामिल होने के लिए माँ ने बिस्मिल को खर्च दिया। इस प्रकार यह कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं कि बिस्मिल को बिस्मिल उनकी माँ ने बनाया। माँ के कारण ही बिस्मिल की आत्मिक, धार्मिक और सामाजिक उन्नति में गणना हो सकी। द |
જવાબ : श्री रामप्रसाद बिस्मिल में आरंभ से ही कुछ असाधारण गुण थे। वे सत्य के प्रेमी थे। इस गुण ने उन्हें दृढ़ सिद्धांतादी बना दिया था। जो वस्तु धर्मविरुद्ध हो, उसे वे कभी स्वीकार न करते थे। मुकदमा खारिज हो जाने की उन्होंने परवाह नहीं की, पर वकालतनामे पर पिता के हस्ताक्षर नहीं किए। वे आर्यसमाज की विचारधारा को मानते थे और अपनी मां और गुरु सोमदेव के सिवाय किसी को महत्व नही देते थे। साधारण मनुष्यों की भाँति संसार-चक्र में फंसकर जीना उन्हें पसंद न था। उन्हें किसी भी प्रकार के भोग-विलास तथा ऐश्वर्य की इच्छा नहीं थी। उन्हें देशसेवा की लगन थी। जिस तरह उन्हें अपनी जन्मदत्री माँ से अगाध प्रेम था, उसी तरह वे भारतमार्तो के चरणों की भी सेवा करना चाहते थे। अंत में भारतमाता की सेवा करने में उन्होंने अपने प्राणों की बलि दे दी।
જવાબ : बिस्मिल की माँ विवाह के समय ग्यारह वर्ष की एक अनपढ़ कन्या थीं। समय बीतने पर घर-गृहस्थी का भार सुचारु रूप से वहन करते हुए उनमें पढ़ने का स्वतः शौक जागा। सखी-सहेलियों से अक्षरज्ञान पाकर श्रम और अभ्यास करके कुछ ही समय में देवनागरी पुस्तकें पढ़ने लगीं। अध्ययन से उनमें तेजस्वी विचार उत्पन्न हुए। देश और समाज के प्रति उनमें सोच उत्पन्न हुई। माँ ने बड़े प्रेम से और दृढ़ता से पुत्र के जीवन का सुधार किया। माँ के कारण ही बिस्मिल देशसेवा में संलग्न हो सका। माँ ने ही पुत्र बिस्मिल के धार्मिक जीवन में भी सहायता की। पुत्र को आर्यसमाज में जाने का समर्थन किया। माँ के कारण ही बिस्मिल में साहस का भाव जागा। यह माँ की प्रभावशाली शिक्षा का ही परिणाम था कि बिस्मिल न केवल अपनी जन्मदात्री माँ का बल्कि भारतमाता का महान पुत्र बन सका।
सचमुच, बिस्मिल की माँ एक आदर्श माँ थी। उनके ये दुर्लभ गुण हमें प्रभावित किए बिना नहीं रहते।
The GSEB Books for class 10 are designed as per the syllabus followed Gujarat Secondary and Higher Secondary Education Board provides key detailed, and a through solutions to all the questions relating to the GSEB textbooks.
The purpose is to provide help to the students with their homework, preparing for the examinations and personal learning. These books are very helpful for the preparation of examination.
For more details about the GSEB books for Class 10, you can access the PDF which is as in the above given links for the same.