જવાબ : ईमानदारी
જવાબ : तुम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते।
જવાબ : उनके कहे अनुसार चलना चाहिए।
જવાબ : हम अपनी जिम्मेदारी नहीं समज़ते
જવાબ : साधारण शब्दोमें
જવાબ : एक वृध्ध सरकारी कर्मचारी आई.सी.एस. के सदस्य
જવાબ : दरिद्र नर- नारीकी सैवामें लगे रहते हैं
જવાબ : जो काम उठाया उसे करना चाहिए
જવાબ : जैसे संसारकी गति उन्हीं पर निर्भर करती हे
જવાબ : मिला हुआ काम खराब करनेकी कोशिष करते हैं
જવાબ : तुम लोग अपने काममें गर्व नहि लेते
જવાબ : वृध्ध ईसाई पादरी
જવાબ : अपने कामका गर्व करने का आदेश है
જવાબ : एक स्त्री
જવાબ : अंत तक पिता पूत्रको घरके काम नहीं बतलाता
જવાબ : तुम लोग बड़े आलसी हो
જવાબ : बड़े बड़े गुणी दूसरों को सिखाये बगैर अपनी विध्या साथ लेकर मर गये
જવાબ : जो संसारमें बडे लोग हें वीई सब अथक परिश्रमी रहे हें
જવાબ : तुम लोगोंमें उदारता नहीं है
જવાબ : एक बड़ी वृध्धा स्त्री
જવાબ : उन्हे समय पर दाम मिल जायेंगे
જવાબ : पहले से बैठे मुसाफिर उन्हें स्थान देंगे
જવાબ : हम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते।
જવાબ : हम लोग अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते।
જવાબ : हम दूसरोंके प्रति अपने कर्तव्यों का अनुभव नहीं करते
જવાબ : जब हम हमारे कर्तव्य ठीक तरह से करते हैं
જવાબ : भारत में लोग दूसरों को आगे नहीं बढ़ाते।
જવાબ : वृद्ध ईसाई पादरी
જવાબ : लंबी दासता के कारण
જવાબ : वृद्ध सरकारी कर्मचारी
જવાબ : वृद्धा स्त्री
જવાબ : श्री प्रकाश
જવાબ : ईमानदारी से
જવાબ : कर्तव्यपालन
જવાબ : मनुष्यसमाज
જવાબ : वृद्ध ईसाई पादरी
જવાબ : वृद्ध सरकारी कर्मचारी
જવાબ : गर्व
જવાબ : लेखक के पहेले मित्र वृद्ध ईसाई पादरी थे।
જવાબ : लेखक को खब्त इस बात का है कि जब वे किसी से मित्रता कर लेते है उसे सहृदय पाकर वे पूछ लेते हैं कि 'हमारा देश उन्नति क्यों नहीं कर रहा हे?'
જવાબ : हमारे देश में लोग खुद आगे रहना चाहते हैं किसी को आगे नहीं बढ़ने देना चाहते, इस प्रकार उदारता का अभाव होने से कुटुंब व्यवस्था नष्ट हो गई।
જવાબ : हमारे देश में बड़े-बड़े नेता हो गए हैं, हम उनकी मूर्ति की स्थापना करके उनका जय-जयकार करते हैं।
જવાબ : जो अपना कर्तव्य ठीक प्रकार से करता है, वह सच्चा देशभक्त है।
જવાબ : हमारे देश के लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते हैं। इसके अलावा वे अपनी जिम्मेदारी भी नहीं समझते। यहाँ के लोग श्रम का महत्व नहीं पहचानते और स्वयं मेहनत करने से परहेज करते हैं। गुणी और जानकार लोगों में उदारता नहीं है। वे अपनी विद्या दूसरों को बताना नहीं चाहते। यदि इन बुराइयों- को दूर कर दिया जाए, तो हमारे देश में जागृति आ सकती है।
જવાબ : मनुष्य समाज को संगठित करने के लिए हमें अपने नेताओं द्वारा बताए हुए मार्ग पर चलना चाहिए और उनके आदेशों के अनुसार अपने जीवन का संगठन करना चाहिए। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारा कार्यक्षेत्र चाहे छोटा हो या बड़ा, हम अपने हर काम ठीक प्रकार से करें। इससे हमारा व्यक्तिगत जीवन संगठित होगा। हमारा व्यक्तिगत जीवन संगठित हो जाने के बाद मनुष्य-समाज अपने आप संगठित हो जाएगा।
જવાબ : यहाँ 'उदारता' शब्द का आशय किसी को आगे बढ़ने देने, किसी को अपनी योग्यता दिखलाने का मौका देने, किसी के विकास का मार्ग अवरुद्ध न करने, अपनी विशिष्ट विद्या अपने जीते जी दूसरों को दे जाने, तथा जरूरतमंद को काम सिखाने आदि के बारे में उदार दृष्टिकोण रखने से है। हमारे देश के लोगों में यह उदारता नहीं होती। वे दूसरों को आगे नहीं बढ़ने देते। स्वयं ही आगे रहना चाहते हैं । गुणी नवयुवकों को अपनी योग्यता दिखाने का अवसर नहीं देते। वे अपनी विद्या भी किसी को नहीं सिखाते और वह उनके साथ ही खत्म हो जाती है। इससे देश और समाज का बड़ा नुकसान होता है और लोगों को उपयुक्त अवसर पाने से वंचित रह जाना पडता है।
જવાબ : ईसाई पादरीने लेखक के प्रश्न के उत्तर में कहा कि, ‘तुम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते।‘ विस्तार से उन्होने कहा कि यहाँ के लोगों की कथनी और करनी में बहुत फर्क होता है। जब किसी को कोई नौकरी चाहिए तो अतिशयोक्तिपूर्ण शब्दों में वह दरंखास्त देता हैं। बहुत ही 'विनय' और 'सम्मान' के साथ वह आरंभ करता है। अंत में प्रतिज्ञा करता हैं कि यदि स्थान मिल जायेगा, तो वह सदा अपने मालिक की शुभकामना करेगा । पर नौकरी मिलते ही वे अपनी जीविका को ही खराब समझने लगते हैं। अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर काम खराब करने के लिए षड़यंत्र रचने लगते हैं और मालिक की नाकों दम करा डालता हैं। अन्य देशों में लोग साधारण शब्दों में नौकरी के लिए दरखास्त देते हैं और जब स्थान मिल जाता हैं, तो वे बड़ी निष्ठा और लगन से काम करते हैं। हमें इस बात पर ध्यान देना जरूरी है।
જવાબ : वृद्ध सरकारी कर्मचारी को जब लेखक ने अपने देश के उन्नति न करने का कारण पूछा, तो उन्होंने उत्तर दिया कि आपके देश के लोगों में जिम्मेदारी की भावना नहीं है। लोग दुसरो के प्रति अपने कर्तव्य को नहीं जानते। लिए गए काम को पूरा करने का गुण लोग भूल गए हैं। इसलिए किसी को किसी-पर विश्वास नही है। खाने की दावत हो, तो मेजबान को यह विश्वास नहीं होता कि महेमान समय से आएंगे ओर मेहमान को यह विश्वास नहीं होता कि समय पर जाने से खाना मिल जाएगा। गृहस्थ को यह विश्वास नहीं होता की धोबी ओर दरजी वादे पर कपड़े दे जाएँगे और धोबी और दरजी को यह विश्वास नही होताकी समय पर दाम मिल जाएँगे। रेलगाडी से यात्रा करनेवाले को विश्वास नहीं होता कि पहले से बैठे यात्री उसे स्थान देंगे और पहले से बैठे यात्रियों को यह विश्वास नहीं होता कि आनेवाला यात्री आने पर व्यर्थ का शोर नहीं मचाएगा। पैदल चलनेवाले को यह विश्वास नहीं होता कि आगे चलनेवाला व्यक्ति अपना छाता इस तरह खोलेगा कि छाते की नोक से उसकी आँख न फूट जाएगी। आगे चलनेवाले व्यक्ति को यह विश्वास नहीं होता कि पीछेवाला व्यक्ति उसे धक्का नहीं देगा। किसी को किसी पर यह विश्वास नहीं कि केले, नारंगी का छिलका या सुई, पिन आदि इस तरह वह न छोड़ेगा, जिससे दूसरों को कष्ट पहुँचे। यहाँ के लोग अपनी तात्कालिक सुविधा देखते हैं। दूसरों के प्रति वे अपने कर्तव्यों का अनुभव नहीं करते।
જવાબ : एक बड़ी वृद्धा स्त्रीने लेखक के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि भारत के लोगों में उदारता नहीं है। इसलिए वे खुद ही आगे रहना चाहते हैं और दूसरों को आगे नहीं बढ़ाते। हमारे देश में अनेक गुणी नवयुवक हैं। वे इन नवयुवकों को अपनी योग्यता दिखाने का मौका नहीं देते। वे अपने गुण दूसरों को नहीं सिखाते और मरने के बाद उनका गुण व्यर्थ हो जाता है। यहाँ अंत तक पिता पुत्र को घर का काम नहीं बतलाता। इसके कारण अनेक कुटुंब नष्ट हो गए। देश में भी यही हालत है- बड़ा छोटों को काम नहीं सिखाता। इसका परिणाम यह हुआ है कि लोगों की प्रतिभा धरी की धरी रह जाती है और उसका उपयोग नहीं हो पाता। इस प्रकार अनेक आविष्कार, औषधियाँ और वैज्ञानिक लुप्त हो जाते हैं।
જવાબ : किसी भी देश की उन्नति उसके गुणी, परिश्रमी. निष्ठवान, जिम्मेदार, उदार तथा विवेकशील नागरिकों पर आधारित होती है। हमारे देश को ऐसे सच्चे और ईमानदार नागरिकों की आवश्यकत है, जिनकी कथनी और करनी में अंतर न हो। वे जो काम लें, उसे निष्ठापूर्वक संपन्न करें। साथ ही उन्हें दूसरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी अहसास होना जरूरी है। प्रत्येक नागरिक को श्रम का महत्व समझना चाहिए और यह बात मानकर चलना चाहिए कि संसार में कठिन परिश्रम के बिना कभी किसी को कुछ नहीं मिलता है। संसार में जो भी बड़े हुए हैं, वे सब अथक परिश्रमी रहे हैं। देश को अथक परिश्रम करनेवाले नागरिकों की आवश्यकता है। इसके अलावा नागरिकों में उदारता का गुण होना भी आवश्यक है। उनमें नवयुवकों को आगे बढ़ाने की उदारता होनी चाहिए। वे लोगों की काम सीखने में मदद करें। लोग ऐसे हों, जो अपने गुण, अपनी कला लोगों को देने में संकोच न करें। देश को ऐसे ही कर्मठ और उदार नागरिकों की आवश्यकता है।
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