જવાબ : तेजी आ गई
જવાબ : नंदन
જવાબ : ट्रंक
જવાબ : कुंदन
જવાબ : प्रसन्नताभरी मुस्कुराहट
જવાબ : थोड़ा-सा काजू और किशमिशें
જવાબ : बिन्दु को एक मुठठी मेवा दिया
જવાબ : मालती आग-बबूला हो गई
જવાબ : फेंक दिया
જવાબ : बिन्दु को पुलिस में दे देने का
જવાબ : मेवा
જવાબ : बिन्दु के दूसरे हाथ की मुठठी बंधी थी
જવાબ : बिन्दु कमरे से कुछ लाया है
જવાબ : बिन्दु लौटकर आ रहा था
જવાબ : जो सबको नहीं मिलती ऐसी चीजें खाने से
જવાબ : बिन्दु की चाल में तेज़ी आ गयी
જવાબ : भूखा-प्यासा कोठरी में पड़ा था
જવાબ : स्वयं परोसकर खाना खिलाया
જવાબ : पैरो में चप्पल डालकर बिन्दु को लेने चली गई
જવાબ : वह नदीवाली कोठरीमें पड़ा है
જવાબ : कुंदन को
જવાબ : दूसरे हाथ की मुट्ठी बंधी है।
જવાબ : कुछ तेजी आ गई है।
જવાબ : ‘इसे पुलिस में दे दो।‘
જવાબ : ‘असली बात जानने का यह तरीका नहीं है।‘
જવાબ : जो सबको नहीं मिलती?
જવાબ : आज की स्थिति बड़ी लाचारी की हो गई है।
જવાબ : बड़ी लाचार
જવાબ : अनाज
જવાબ : बहस
જવાબ : खुद
જવાબ : हाथ
જવાબ : चौके पर
જવાબ : मुठ्रीभर
જવાબ : स्नेहपूर्ण
જવાબ : चोरी
જવાબ : डबडबा
જવાબ : मालती के मन में बिन्दू के प्रति यह आशंका हुई कि वह अपनी मुट्ठी में घर की कोई कीमती चीज दबाए जा रहा है।
જવાબ : मालती बिन्दू को उल्टी-सीधी बातें सुनाने लगी, तो नंदन ने उसे शांत करते हुए कहा कि असली बात जानने का यह तरीका नहीं|
જવાબ : कूड़ा फेंकने की जगह पर नंदन और मालती को थोड़े से काजू और थोड़ी किशमिशें पड़ी दिखीं।
જવાબ : कुंदन ने काका के घर से गेहूँ चुराया था।
જવાબ : चोरी के विषय में नंदन ने मालती से कहा कि जब तक सब चीजें सबको नहीं मिलतीं, तब तक चोरी बंद नहीं हो सकती। चोरी अच्छी नहीं है पर आज की स्थिति लाचारी की हो गई है।
જવાબ : मालती के संदेह की पुष्टि तब हो गई जब उसके पुकारने पर बिन्दू ठहरने के बदले दौड़ने लगा।
જવાબ : मालती ने बिन्दू को पुलिस में देने के लिए कहा, क्योंकी बार-बार पूछने पर भी वह सच नहीं बता रहा था।
જવાબ : नीयत के बारे में मालती ने कहा कि एक बार नौकर की नीयत बिगड़ी, तो फिर हाथ रुकता नहीं है।
જવાબ : नंदन ने बिन्दू को प्यार से समझाकर कहा कि वह सच-सच बता दे कि अपनी मुट्ठी में क्या ले गया है, उसे कोई कुछ नहीं कहेगा। इस तरह नंदन ने बिन्दू को भरोसा दिलाकर उससे चोरी की बात मालूम की।
જવાબ : बिन्दू कमरे में नीचे पड़े थोड़े-से मेवे उठा लाया था, पर उसे लग रहा था जैसे उसने दुनिया का बहुत बड़ा पाप कर डाला हो। बिन्दू अपने दोष का पश्चात्ताप करने के लिए भूखा-प्यासा एकांत में एक कमरे में मुँह छिपाकर पड़ा रहा।
જવાબ : मालती ने घर-बाहर सभी जगह छान मारा, उसे बिन्दू का कहीं पता नहीं चला। दोपहर बीत गई और शाम होने को आई थी, पर बिन्दू नहीं लौटा। मालती को अच्छा नहीं लगा। वह चिंता करने लगी बेचारे ने से कुछ नहीं खाया था। भूखा-प्यासा जाने कहाँ भटक रहा होगा।
જવાબ : नंदन की नजर में नौकर (बिन्दू) चोर नहीं है। वे अपने आपको तथा मालती को ही चोर मानते हैं, जिनके कारण बिन्दू में चोरी की भावना का जन्म हुआ। उनके विचार से सबको सब चीजें मिलनी चाहिए। हमने उसे नहीं दिया इसलिए बिन्दू को यह चोरी करनी पड़ी।
मालती की नजर में बिन्दू एक चोर नौकर है और वह झूठ बोलता है। बिन्दू उन अन्य नौकरों की तरह है, जो घरों में छोटी-मोटी चोरियाँ करते-करते बड़ी-बड़ी चोरियाँ करने लगते हैं। उसके साथ नरमी से पेश न आकर कड़ाई से पेश आना चाहिए।જવાબ : नंदन के आत्मीय व्यवहार से बिन्दू ने स्वीकार कर लिया कि कमरे में नीचे गिरा थोड़ा-सा मेवा वह उठा लाया था। नंदन को यह सुनकर जरा भी गुस्सा नहीं आया, बल्कि वह बिन्दू को लेकर कमरे में गया और कनस्तर से एक मुट्ठी मेवा निकालकर उसने बिन्दू को खाने के लिए दिया। नंदन इस विचारधारा के हैं कि सब चीजें सबको मिलनी चाहिए।
જવાબ : दोपहर बीती और शाम होने को आई, पर बिन्दू अब तक नहीं लौटा। यह सोचकर मालती को चिंता होने लगी। ‘बेचारा भूखा-प्यासा जाने कहाँ भटक रहा होगा।' उसके मन में बिन्दू के प्रति सहानुभूति जग गई। उसने कमरे से बाहर आकर देखा, बगीचे में चक्कर लगाया कि कहीं पेड़ के नीचे पड़ा सो न रहा हो। फिर वह अपने आप को कोसने लगी कि उसने छोटी-सी बात को इतना तूल क्यों दिया। तभी उसे कुंदन से पता चला कि बिन्दू नदीवाली कोठरी में पड़ा है। सुनते ही वह तुरंत जाकर वहाँ से बिन्दू को उठाकर ले आई। वह उसे चौके में ले गई और स्वयं परोसकर उसे भरपेट खाना खिलाया।
જવાબ : हमारे समाज में दो तरह के लोग होते हैं। कुछ लोग प्रेम से कहने पर कोई काम करते हैं, तो कुछ लोग लाख समझाने पर भी वह काम नहीं करते। लेकिन मारने या डाँटने पर वे उस काम को करने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे लोग प्रेम की भाषा नही समझते। उनके साथ नरमी का व्यवहार न कर कड़ाई से काम लेना पडता हे। उनके साथ उसी भाषा में व्यवहार करना चाहिए जिस भाषा को वे समझते हैं।
જવાબ : मनुष्य का स्वभाव है कि वह किसी व्यक्ति को किसी वस्तु का इस्तेमाल करते हुए देखता है, तो उसे पाने की उसकी भी इच्छा हो जाती है। यदि वह वस्तु उसे उपलब्ध नहीं होती, तो वह चोरी से उसे प्राप्त करने में भी नहीं हिचकता। इसलिए जब तक सब चीजें सबको नहीं मिलती, चोरी बंद नहीं हो सकती। चोरी की भावना पनपने न देने का एक उपाय यह हे कि लोगों को ऐसी चीजों का उपयोग करने से बचना चाहिए, जो सबको उपलब्ध नहीं हो पातीं।
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