જવાબ : बुध्धिरामकी छोटी बेटी लाडली
જવાબ : बचपन
જવાબ : भतीजा
જવાબ : जीभके स्वादकी
જવાબ : प्रेमचंद
જવાબ : रोनेका सहारा लेती थी
જવાબ : बुध्धिरामके बेटेका तिलक आया था
જવાબ : वे केवल खानेके लिए रोती थी
જવાબ : वो गला फाड फाडकर रोती थी
જવાબ : अनाथ आश्रममैं
જવાબ : अपशकुनके डरसे
જવાબ : पूडियॉँकी तसवीर
જવાબ : कचौडिमै अजवाईन और ईलायचीकी महक आ रही होगी
જવાબ : वापस अपनी कोठरी में चली गयी
જવાબ : अपनी जल्दबाजी का
જવાબ : कचौडिया नहि खाने का
જવાબ : लेटकर गीत गुनगुनाने लगी
જવાબ : लाडली
જવાબ : रूपाका क्रोध न रुक सका
જવાબ : उन्हे घसीटकर अंधेरी कोठरीमें पटक दिया
જવાબ : परमात्मा से प्रार्थना करके अपना अपराध क्षमा करवाने को कहा
જવાબ : वो उन पुड़ियोंको काकीके पास ले जाना चाहती थी
જવાબ : उनकी क्षुधा और उत्तेजित एचओ गयी
જવાબ : पुड़ियों के जूठे टूकड़े चुनकर खाने लगी
જવાબ : महेमानोंने जहां बैठकर खाना खाया था वहाँ ले जाने को कहा
જવાબ : बूढ़ी काकीको धैर्य देना चाहती थी
જવાબ : करुणा और भयसे उसकी आंखे भर आई
જવાબ : उनकी स्वादेन्द्रियां
જવાબ : भंडार खोलकर काकीके लिए थलीमें सारा भोजन सजाया और काकीको दिया
જવાબ : वो अपनी माँ से डरती थी
જવાબ : पं. बुद्धिराम
જવાબ : पं. बुद्धिराम
જવાબ : लाडली
જવાબ : रूपा
જવાબ : बुद्धिराम के लड़के सुखराग के तिलक का उत्सव था।
જવાબ : बूढ़ी काकी को बेचैन कर दिया था।
જવાબ : जब संपूर्ण इच्छाएँ एक ही केंद्र पर आ लगती है।
જવાબ : उत्तेजित कर दिया था।
જવાબ : उनके संताप और आर्तनाद पर कोई ध्यान नहीं देता था।
જવાબ : स्वादकी
જવાબ : भतीजा
જવાબ : भूख
જવાબ : तृष्णा का
જવાબ : लाड़लीने
જવાબ : पं. बुद्धिरामकी
જવાબ : घी और मसालों की
જવાબ : माँ का
જવાબ : नाच रही थी
જવાબ : सुरक्षा का
જવાબ : अंधेरी कोटरी में
જવાબ : विद्वेष
જવાબ : पं. बुद्धिराम
જવાબ : पं. बुद्धिराम
જવાબ : लाड़ली
જવાબ : रूपा
જવાબ : रूपा
જવાબ : बूढ़ी काकी गला फाड़-फाड़कर रोती थी।
જવાબ : बुद्धिराम के बड़े लड़के सुखराम के तिलक का उत्सव था. इसलिए बुद्धिराम के घर पूडियाँ बन रही थीं।
જવાબ : बूढ़ी काकी को कड़ाह के पास बैठा देखकर रूपा क्रोधित हो गई।
જવાબ : काकी को पूडियाँ देने की खुशी में लाड़ली को नींद नहीं आ रही थी।
જવાબ : उत्सव के दिन अपशुकन के डर से काकी नहीं रो रही थी।
જવાબ : बुढ़ापे में बूढ़ी काकी की समस्त इच्छाओं का केन्द्र स्वार्देद्रिय थी।
જવાબ : रूपा की आँख खुलने पर उसने देखा कि लाड़ली जूठे पत्तलों के पास चुपचाप खड़ी है और बूढ़ी काकी पत्तलों पर से पूडियों के टुकड़े उठा-उठाकर खा रही हैं।
જવાબ : बूढ़ी काकी जूठे पत्तलों पर से पूडियों के टुकड़े उठा- उठाकर खा रही थी, यह दृश्य देखकर रूपा का हृदय सन्न हो गया।
જવાબ : भोले-भाले बच्चें, जो मिठाइयाँ पाकर मार और तिरस्कार सब भूल जाते हैं, वेसे बूढ़ी काकी सब भुलाकर खाना खा रही थी।
જવાબ : जैसे थोड़ी-सी वर्षा ठंडक के स्थान पर गरमी पैदा कर देती है, उसी तरह इन थोड़ी पूडियों ने काकी की क्षुधा और इच्छा को और उत्तेजित कर दिया था।
જવાબ : बुद्धिराम के संपूर्ण परिवार में काकी से केवल बुद्धिराम की छोटी बेटी लाड़ली को ही अनुराग था।
જવાબ : बूढ़ी काकी में जीभ के स्वाद के सिवा कोई चेष्टा शेष नहीं थी। जब घरवाले उनकी इच्छा के विपरीत कोई काम करते, उनके भोजन का समय टल जाता या भोजन की मात्रा कम होती अथवा बाजार से कोई चीज आती और उन्हें न मिलती, तो वे रोती थीं।
જવાબ : लड़कों में से कोई उन्हें चुटकी काटकर भागता था और कोई उन पर पानी की कुल्ली कर देता था। इस तरह लड़के बूढ़ी काकी को सताते थे।
જવાબ : बूढ़ी काकी की कल्पना में लाल-लाल, फूली-फूली और नरम-नरम पूड़ियों की तसवीर नाचने लगी।
જવાબ : रूपाने थाली में भोजन सजाकर बूढ़ी काकी के सामने रखा और कहा, ''काकी उठो, भोजन कर लो। मुझसे आज बड़ी भूल हुई, उसका बुरा न मानना। परमात्मा से प्रार्थना कर दो कि वे मेरा अपराध क्षमा कर दें।”
જવાબ : बुद्धिराम ने बूढ़ी काकी से खूब लंबे चौड़े वादे किए और उन्हें तरह-तरह के सब्जबाग दिखाए। बूढ़ी काकी उसके झाँसे में आ गई। इस तरह बुद्धिराम ने बूढ़ी काकी की संपत्ति हथिया ली।
જવાબ : रूपा के बड़े लड़के सुखराम के तिलक में मेहमानों को पूड़ियाँ, कचौड़ियाँ तथा मसालेदार सब्जियाँ परोसी गई थीं। सब खा-पीकर सो गए, पर बूढ़ी काकी को खाने के लिए किसी ने नहीं पूछा। रात को रूपा की नींद खुली तो उसने जो दृश्य देखा उससे उसका हृदय सन्न रह गया। भूख से व्याकुल बूढ़ी काकी जूठे पत्तलों से चुन-चुनकर पूड़ियों के टुकड़े खा रही थीं। यह देखकर उसे अपनी भूल पर बहुत पश्चाताप हुआ। उसने सोचा कि जिसकी संपत्ति से उसे दो सौ रुपए वार्षिक आय होती है, उसके साथ उसने यह कैसा बर्ताव किया।
જવાબ : रूपा और बुद्धिराम के बड़े लड़के सुखराम के तिलक में पूड़ियाँ, कचौड़ियाँ निकाली जा रही थीं और मसालेदार सब्जी बन रही थी। घी और मसालों की सुगंध चारों ओर फैल रही थी। बूढ़ी काकी को यह सुगंध बेचेन कर रही थी। वे रेंगते-रेंगते कड़ाह के पास पहुँच गई थीं। इस पर रूपा आग-बबूला हो उठी थी और उसने काकी को दोनों. हाथों झटककर उनको बहुत जलील किया था। इसके बाद एक बार फिर बूढ़ी काकी भोजन की आशा में सरकती हुई आँगन में आ गई थीं, पर मेहमान तब तक भोजन कर ही रहे थे। इस पर बुद्धिराम क्रोध से तिलमिला गया था। वह काकी के दोनों हाथ पकड़कर घसीटते हुए. उन्हें उनकी कोठरी में पटक आया था। इस प्रकार रूपा और बुद्धिराम ने बूढ़ी काकी के प्रति इन दो अवसरों पर अमानुषी व्यवहार किया था।
જવાબ : खाने के बारे में बूढ़ी काकीने तरह-तरंह के मंसूबे बाँधे थे। बूढ़ी काकी की कल्पना में पूड़ियों की तस्वीर नाच रही थी। पूड़ियाँ लाल-लाल, फूली-फूली, नरम-नरम होंगी।] कचोड़ियों में आजवाइन और इलायची की महक आ रही होगी। वे कहतीं, पहले सब्जी से पूड़ियाँ खाऊंगी, फिर दही और शक्कर से। कचौड़ियाँ रायते के साथ मजेदार मालूम होंगी। वे कहतीं, चाहे कोई बुरा माने चाहे भला, वे माँग-माँगकर खाएँगी। लोग यही कहेंगे न कि इन्हें विचार नहीं है। कहा करें लोग। इतने दिन के बाद पूड़ियाँ मिल रही हैं, तो मुँह जूठा करके थोड़े ही उठ जाएँगी। इस प्रकार बूढ़ी काकी के मन में खाने के बारे में मंसूबे बँधे थे।
જવાબ : अपने जीवन में मनुष्य की तरह-तरह की कामनाएँ, होती हैं। बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था तथा प्रौढ़ावस्था तक मनुष्य को जल्द-से-जल्द कामनाओं की पूर्ति की उतनी चिता नहीं होती, जितनी वृद्धावस्था में। क्योंकि वृद्धावस्था में मनुष्य के जीवन के गिने-चुने वर्ष ही बचे रहते हैं। वह जीवन के बचे-खुचे वर्षों में अपनी कामनाओं को पूरा करने की हर हालत में कोशिश करता है। इसके लिए उसे बुरे- भले, मान-अपमान की परवाह नहीं होती। इसलिए लेखक ने कहा है कि बुढ़ापा तृष्णारोग का अंतिम समय है।
જવાબ : ऐसा कहा जाता हैं की बुढ़ापा बचपन का ही एक रूप है। वृद्धावस्था में मनुष्य की हरकतें बच्चों जेसी हो जाती हैं। वृद्धावस्था में मनुष्य के अंग-प्रत्यंग कमजोर हो जाते हैं और उन्हें बच्चों की तरह दूसरों का सहारा लेना पड़ता है। दिमाग कमजोर हो जाता है और याददाश्त बच्चों की तरह हो जाती है। दाँत गिर जाते हैं और मनुष्य का मुँह बच्चों की तरह पोपला हो जाता है। बच्चों की कि तरह वृद्धों को मान-अपमान की परवाह नहीं होती। जैसे बच्चों की बातों|पर ध्यांन नहीं दिया जाता, उसी प्रकार वृद्धों की बातों पर भी ध्यान नहीं दिया जाता। उनकी इच्छा- अनिच्छा का भी कोई महत्व नहीं होता। वृद्धावस्था और बचपन की अधिकांश बातों में समानता होती है। इसलिए कहा जा सकता है कि, बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन होता है।
જવાબ : लड़कों का बूढ़ों से स्वाभाविक विद्वेष होता है क्योकी लड़कों और बूढ़ों के बीच पीढ़ियों का अंतर होता है। हर बात के संबंध में दोनों की सोच में अंतर होना स्वाभाविक है। अधिकांश बूढ़े किसी बात को अपने ढंग से सोचते हैं और उसके बारे में उनकी अपनी धारणा बनी होती है। हर बात को अपने इसी पैमाने पर कसने का वे प्रयास करते हैं। जबकि, नई पीढ़ी के लड़कों की सोच नए ढंग की होती है। इसलिए दोनों के विचारों में टकराव होना स्वाभाविक है। इस अर्थ में लड़कों और बूढ़ों में स्वाभाविक विद्वेष होता ही है।
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