જવાબ : बचे हुए पैसे किसी-न-किसी तरह खर्च हो जाते थे।
જવાબ : उनके रोते हुए बच्चे उनकें चित्रों को देखकर चुप हो जाते थे।
જવાબ : अलबम बनाया
જવાબ : मारवाड़ी सेठ ने अलबम खरीद लिया था।
જવાબ : किताबों में बने चित्र रोते बच्चों को चुप कराने के काम आते थे
જવાબ : क्या यह ऋण कभी सिर से न उतरेगा ?
જવાબ : किताबों में बनी अच्छी अच्छी तसवीरों को अलग छांटने को
જવાબ : अपने बेटे की दवाई में
જવાબ : अस्सी रुपए
જવાબ : कई सौ बंगला, हिन्दी और अंग्रेजी मासिक पत्रिकाएँ
જવાબ : पंडितजी के बडे भाई की
જવાબ : लाला सदानंद का रुपया अदा कर देना
જવાબ : लाला कभी अपने पैसे नहीं मागता था ?
જવાબ : 500 रुपए
જવાબ : कलकते के मारवाड़ी सेठ का
જવાબ : अलबम बनाना चाहते थे
જવાબ : यह अलबम मैंने सेठ से मँगवा लिया है
જવાબ : पंडितजी का भेजा हुआ अलबम
જવાબ : उनके लिए रात-दिन माला फेरा करते थे
જવાબ : ये सोचकर की उन्होने लाला का ऋण उतार दिया है
જવાબ : कोई चुभती हुई चीज
જવાબ : पंडितजी की तरफ़से विज्ञापन देना चाहते थे
જવાબ : लाला सदानंद
જવાબ : पत्रिकाएँ
જવાબ : कलकत्ते के मारवाडी शेठ ने
જવાબ : बेचते नहीं थे।
જવાબ : पंडित शादीराम को
જવાબ : अलबम भेजने के लिए
જવાબ : भाग्य
જવાબ : शांति
જવાબ : शांति
જવાબ : शादीराम के बड़े भाई
જવાબ : सचित्र
જવાબ : आँसू
જવાબ : हीरा
જવાબ : दस-दस
જવાબ : भाग्य
જવાબ : अलबम
જવાબ : अलबम
જવાબ : लाला सदानंद ने शादीराम को पुरानी पत्रिकाओं से अच्छी-अच्छी तस्वीरें अलग छाँट लेने की सलाह दी।
જવાબ : पंडित शादीराम लाला सदानंद के लिए दिन-रात माला फेरते थे। यही उनकी औषधी थी जिसे वे अपनी आत्मा की पूरी शक्ति और मन से कर रहे थे।
જવાબ : लाला सदानंद ने शादीराम से उसने रुपयों का कभी तगादा नहीं किया, क्योंकि वे उनकी विवशता जानते थे।
જવાબ : लाला सदानंद के सिरहाने रखी सख्त चीज वही अलबम था जो किसी सेठ ने नहीं, बल्कि स्वयं लाला सदानंद ने खरीदा था।
જવાબ : शादीराम ने सदानंद के सिरहाने अलबम देख लिया था। इसलिए वह अलबम छीनकर सदानंद ने शादीराम से कहा कि 'अलबम सेठ से मैंने मँगवा लिया है' ताकि उन्हें शंका न हो।
જવાબ : पंडित शादीराम के बचाए हुए अस्सी रुपये लड़के की बीमारी में खर्च हो गए।
જવાબ : पंडित शादीराम के स्वर्गीय बड़े भाई के समय की पत्रिकाओं को देखकर रोते बच्चों के आँसू थम जाते थे। इसलिए पंडित शादीराम पुरानी पत्रिकाएँ नहीं बेचते थे।
જવાબ : पंडित शादीराम ने कई साल पहले लाला सदानंद से कर्ज लिया था। पर भले मानस लाला सदानंद कभी उनसे पैसों का तकादा नहीं करते थे। पंडित शादीराम पेट काट-काटकर पैसे बचाते, फिर भी कोई-न-कोई काम निकल आता कि सारा पैसा उड़ जाता। इस कारण शादीराम कर्ज अदा करने के लिए बेचैन थे।
જવાબ : कर्ज को लेकर परेशान शादीराम की समस्या का हल निकालने के लिए लाला सदानंद ने शादीराम के घर पर पड़ी सुंदर तस्वीरोंवाली पत्रिकाओं से अच्छी-अच्छी तस्वीरें छाँटने के लिए उनसे कहा। इन तस्वीरों का अलबम बनाकर विज्ञापन देने पर कलकत्ते के मारवाड़ी सेठ ने यत्र. लिखकर यह अलबम खरीद लिया। इस तरह लाला सदानंद ने शादीराम की समस्या का हल निकाला।
જવાબ : कर्ज को लेकर परेशान शादीराम को कर्ज से मुक्त करने के लिए लाला सदानंद ने शादीराम के घर पर पड़ी सुंदर तस्वीरोंवाली पत्रिकाओं से अच्छी-अच्छी तस्वीरें छाँटने के लिए उनसे कहा। इन तस्वीरों का अलबम बनाकर विज्ञापन देने पर कलकत्ते के मारवाड़ी सेठ ने पत्र लिखकर यह अलबम खरीद लिया। उन पैसों से शादीराम ने अपना कर्ज चुका दिया।
જવાબ : रोगी लाला सदानंद के सिरहाने अलबम देखकर पंडित शादीराम समझ गए कि किसी सेठ ने नहीं बल्कि लाला सदानंद ने खरीदा था। होश आने पर लाला सदानंद ने कहा कि सेठ से उन्होंने अलबम मँगवा लिया। इस पर पंडित शादीराम समझ गए कि लाला सदानंद झूठ बोल रहे हैं लेकिन पहले से भी अधिक सज्जन, अधिक उपकारी और उच्च मनुष्य से वे यह कह न पाए।
જવાબ : पंडित शादीराम की कर्ज मुक्ति के लिए अलबम बनवाकर लाला सदानंद ने मारवाडी सेठ को बिकवा दिया। इन पैसों से पंडित शादीराम ने लाला सदानंद का कर्ज उतार दिया। जब पंडित शादीराम ने जाना कि अलबम मारवाडी सेठ के बजाय लाला सदानंद ने खरीदा है, तब वे समझ गए कि पहले का कर्ज तो अदा नहीं हुआ और इस अलबम के लिए दिए गए पैसों के रूप में कर्ज बढ़कर दुगुना हो गया।
જવાબ : पंडित शादीराम गरीब थे, पर दिल के बुरे न थे। उन्हें अपने यजमान लाला सदानंद से लिया गया कर्ज बोझ के समान लगता था। वे चाहते थे कि जिस तरह भी हो, उनका रुपया अदा कर दें। वैसे लाला सदानंद को इस रकम की ज्यादा परवाह न थी। वे चाहते थे कि शादीराम रुपए देने की कोशिश न करें। उन्होंने इसके लिए कभी तकादा तक नहीं किया था, पर शादीराम सोचते थे कि वे कुछ नहीं कहते, तो क्या हुआ, इसका मतलब यह थोड़े ही है कि मैं भी निश्चित हो जाऊँ! इसीलिए शादीराम के दिल में शांति न थी।
જવાબ : लाला सदानंद ने पंडित शादीराम से अलबम बनाने के लिए पत्रिकाओं से अच्छी तसवीरें छांटने के लिए कहा, तो उन्हें विश्वास नही हुआ कि उनका यह प्रयल सफल होगा। लेकिन जब सौ-दो सौ बढिया चित्र जमा हो गए, तो उन्हें देखकर वे उछल पड़े। वे चित्रों की और इस तरह देखते जैसे हर चित्र दस-दस का नोट हो। यद्यपि आशा अभि दूर थी, पर लाला सदानंद की दी हुई आशा पर अब उन्हें पूरा विश्वास हो गया। इसलिए पंडित शादीराम भविष्य की कल्पना करते हुए खुशी से झूमने लगे।
જવાબ : पंडित शादीराम गरीब थे, पर दिल के बुरे नहीं थे। वे लाला सदानंद के कर्ज के रुपए अदा करने का पूरा प्रयास करते थे, पर किसी-न-किसी कारण से इकट्ठा किया गया रुपया उन्हें खर्च कर देना पडता था। इसलिए उन्हें मन मारकर रह जाना पड़ता था। लाला सदानंद अपने पुरोहित शादीराम की विवशता को जानते थे। उन्हें इस रकम की परवाह न थी और चाहते थे कि शादीराम कर्ज के रुपए देने का प्रयास न करे। इसीलिए उन्होंने शादीराम को कभी तकादा भी नहीं किया था।
જવાબ : लाला सदानंद एक सज्जन, भले मानस, संवेदनशील और दूसरो की मदद करनेवाले व्यक्ति हैं। उन्होंने कई वर्ष पहले अपने पुरोहित पंडित शादीराम को कर्ज दिया था, लेकिन इतने दिनों बाद भी उन्होंने शादीरामसे पैसों का कभी तकादा नहीं किया, बल्कि उनकी विवशता को देखते हुए वे चाहते थे कि वे रुपए न लौटाएँ तो अच्छा हो। दूसरों की मदद करने में भी वे पीछे नहीं रहते। पंडित शादीराम की सहायता करने के उद्देश्य से ही उन्होंने उनसे पत्रिकाओं से अच्छे चित्र छाँटकर जमा करने के लिए कहा था। उन्होंने चित्रों से स्वयं अलबम बनाया, विज्ञापन दिया और किसी सेठ के नाम से पत्र भेजकर अलबम स्वयं अपने पास रखकर शादीराम को रुपए दिलाए। यह सब उन्होंने इसलिए किया, ताकि शादीराम के आत्मसम्मान पर आँच न आए और उन्हें यह लगे कि रुपए उन्हें अपनी चीज के मूल्य के रूप में मिले हैं, दान में नहीं। इतना ही नहीं, अपने घर में पंडित शादीराम के हाथ में अलबम देखकर वे उनका विश्वास बनाए रखने के लिए झूठ बोलते हैं कि 'अलबम अब उन्होंने सेठ साहब से मँगवा लिया है।'
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