જવાબ : चीनियों ने
જવાબ : हँसी-खुशी में बिताने
જવાબ : जब वह बुझे दिल हो
જવાબ : जीते रहेना
જવાબ : जो सबसे ज्यादा खुश रहेता है
જવાબ : हमारे सुख-दुख की छूत दूसरों को भी लगती है
જવાબ : जीते रहेने का मुश्किल काम करके
જવાબ : कैसे जीवनको बड़े-बड़े कामों के लिये काम में लाए
જવાબ : जीवन को हंसी-खुशी में काट देना
જવાબ : संसार की हर परिस्थिति में प्रसन्न रहेके
જવાબ : न हम उदास रहें, न दूसरों को उदास करें
જવાબ : खुश रहना
જવાબ : मर जाना
જવાબ : एक शीशाघर
જવાબ : वही छाया सैकडो चहेरों पर छा जायेगी
જવાબ : खुद खुश रहकर
જવાબ : दुःखका जीवन
જવાબ : तीनों में खुद जीवन के विरूध्ध भाव उत्पन्न हो गया
જવાબ : दूसरों को खुश देखकर
જવાબ : जीवन जीने को मानते है।
જવાબ : बुझे दिल हो।
જવાબ : जो सबसे ज्यादा खुश रहता है।
જવાબ : पूर्णसंग्रह का अंश है।
જવાબ : फ्रांसीसी लेखक है।
જવાબ : बुद्धिमान
જવાબ : आंद्री गीद
જવાબ : हर आदमी पूर्ण संग्रह का अंश है।
જવાબ : लेखक के हिसाब से जीते रहना सबसे बड़ा काम है।
જવાબ : मर जाना लेखक के हिसाब से छोटा काम है।
જવાબ : प्राचीन चीनियोंने जीवन की समस्या को ठीक से समझा था।
જવાબ : हँसी-खुशी से जीवन जीकर जीवन की सबसे बड़ी गुत्थी को सुलझाया जा सकता हे।
જવાબ : चीनियों ने जीवन की समस्या को ठीक से समझा था।
જવાબ : जो सबसे ज्यादा खुश रहता है, वह दुनिया में सबसे बड़ा बुद्धिमान है।
જવાબ : प्रसन्न रहने की कला सबसे आवश्यक है।
જવાબ : लेखक की दृष्टि से सबसे बड़ा काम जीवन जीने का है।
જવાબ : सुख-दुःख की छूत दूसरों को भी लग सकती है।
જવાબ : फ्रांसीसी लेखक आंद्री गीद ने लिखा हे कि - 'खुश रहना केवल जरूरत नहीं है, यह एक नेतिक उत्तरदायित्व भी है'।
જવાબ : जीवन का उद्देश्य आनंद प्राप्त करना है। इसके लिए प्रसन्न रहना बहुत जरूरी हे। खिले हुए सुंदर फूल, बहते हुए झरने, गाते हुए पेडो, पेडो का नृत्य, टिमटिमाते तारे, चाँद के हँसते चेहरे और चमकते सुरज आदि को देखकर हम प्रसन्न होते हैं। प्रसन्न रहने के लिए इनका अवलोकन करना चाहिए।
જવાબ : मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन का प्रभाव उस तक ही सीमित नही रहता। यह दूसरों पर भी पड़ता है। सुख-दु:ख की छूत दूसरों को भी लगती है। हम उदास रहेंगे, तो हमें देखकर दूसरे भी उदास होंगे। हम खुश रहेंगे, तो हमें देखकर दूसरे भी खुश होंगे। इस तरह खुश रहना केवल एक जरूरत ही नहीं, यह एक नैतिक उत्तरदायित्व भी है।
જવાબ : हम जो कुछ अपने लिए करते हैं, उसमें भी दूसरों का भाग होता है। हम खुद खुश होकर दूसरों को खुश करते हैं और दूसरों को खुश देखकर खुद खुश होने लगते हैं। लेकिन जब हमारे चारों तरफ उदास चेहरें जमा हो जाएं, तब हमारी अपनी खुशी हमें खुश नहीं कर सकती।
જવાબ : हमारा जीवन एक शीशाघर है। हम जो भी करते हैं, उसका प्रतिबिंब एक ही समय में सैकड़ों लोगों पर पड़ता है। हर आदमी पूर्वसंग्रह का अंश है। वह जो कुछ अपने लिए करता है, उसमें दूसरों का भाग होता है। दूसरे लोग जो कुछ करते हैं उससे वह प्रभावित होता है। इसलिए आदमी का जीवन उसकी अपनी व्यक्तिगत जायदाद नहीं है।
જવાબ : बुझे हुए दिल और सूखे हुए चेहरे धर्म, फिलासफी और सदाचार के प्रतीक माने जाते हैं। जिस चित्र में सूरज का चमकता हुआ मस्तक, चाँद का हँसता हुआ चेहरा, तारों की झिलमिलाती हुई आँखें, पेंडो का नूत्य, पंछियों का संगीत, बहते हुए पानी की तरंगें तथा खिलते हुए फूलों की बहारें अपनी शोभा दिखा रही हों, वहाँ हम बुझे हुए दिल और सूखे हुए चेहरों के साथ स्थान नहीं प्राप्त कर सकते।
જવાબ : लेखक, का मत है कि मनुष्य को हर स्थिति में प्रसन्न रहना चाहिए। प्रसन्न रहने की कला सीख लेने पर अन्य किसी भी कला को सीखने की आवश्यकता नहीं होती। वे फ्रांसीसी लेखक आंद्री गीद के कथन का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि खुश रहना मनुष्य की जरूरत ही नहीं है, बल्कि यह उसका नैतिक उत्तरदायित्व है। हमारे सुख-दुःख की छूत दूसरों को भी लगती है। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि न हम उदास हों और न दूसरों को उदास करें। हम खुश रहेंगें तो अन्य भी खुश रह सकते हैं। एक अच्छे समाज के लिए खुश रहना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
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