જવાબ : पक्षी
જવાબ : नंद की धेनु चराने में
જવાબ : सोने का राजमहल
જવાબ : गुंजे की
જવાબ : नंदजी की गायों के बीच रहकर चरना चाहते हैं।
જવાબ : गोपी निश्छल प्रेम का विश्वासघात करना नहीं चाहती।
જવાબ : कृष्ण की भाँति वन में भटकते हुए गायें चराना चाहते हैं।
જવાબ : आठेों सिद्धियों और नौवों निधियों से प्राप्त सुख को भूला देंगें।
જવાબ : गोकुलमें
જવાબ : नन्दबाबाकी गायों के बीच
જવાબ : वे गोवर्धन पर्वतका पत्थर बनना पसंद करेंगे
જવાબ : नन्दकी गाय चरानेके सुखके आगे
જવાબ : यमुनाके किनारे कदंबकी डाल पर बसना पसंद करेंगे
જવાબ : अपनी आंखोसे केब वे बज्के वन, बाग और तालाब निहारेंगे ?
જવાબ : रसखान
જવાબ : वे मुस्लिम होते हुए भी कृष्ण-भक्त थे
જવાબ : कांटेदार ज़ाडियोंसे ढकी ब्रजभूमिमें रहनेका सुख
જવાબ : गोपी श्री कृष्णका रूप धारण करे
જવાબ : अपनी सौतन जैसी
જવાબ : कृष्णकी मुरलीको अपने अधर पर नहि सजाएगी
જવાબ : आठ
જવાબ : गोवर्धन
જવાબ : कदंब
જવાબ : निश्चल
જવાબ : पुरंदर
જવાબ : श्रीकृष्ण
જવાબ : आठ, नव
જવાબ : पक्षी
જવાબ : गुंजो
જવાબ : गोवर्धन
જવાબ : यमुना
જવાબ : वेणु
જવાબ : गोवर्धन
જવાબ : मोरपंख
જવાબ : लकुटी
જવાબ : मुरली
જવાબ : पशु
જવાબ : मनुष्य के रूप में जन्म मिलने पर रसखान गोकुल गाँव में ग्वालों के साथ बसना चाहते है।
જવાબ : पशु के रूप में कवि नंद की गायों के बीच निवास करना चाहते हैं।
જવાબ : रसखान गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहते हैं।
જવાબ : पशुयोनि में जन्म लेना कवि के वश में नहीं हैं, परंतु कवि इतना ही चाहते हैं कि प्रतिदिन उन्हें नंद की गायों के बीच चरने का मौका मिले।
જવાબ : आठ सिद्धि और नव निधि का सुख नंद की धेनु चराने में प्राप्त होगा।
જવાબ : कवि रसखान श्रीकृष्ण की लाठी और कंबली को पाने के लिए आकाश, पाताल और मृत्यु ये तीनों लोकों का राज्य त्यागने को तैयार हे।
જવાબ : रसखान अगले जन्म में श्रीकृष्ण की जन्मभूमि में उस पर्वत का पत्थर बनना चाहते हैं, जिसे श्रीकृष्ण ने अपने हाथों पर उठा लिया था। इसका कारण यह है कि वे उस पहाड़ का पत्थर बनकर अपने आपको धन्य मानेंगे, क्योंकि उस पर्वत को श्रीकृष्ण ने स्पर्श किया था।
જવાબ : लकुटी लेकर रसखान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि में कृष्ण की भाँति वन में भटकते हुए गाएँ चराना चाहते हैं। इससे वे अपने आपको श्रीकृष्ण के समीप होने का अहसास करना चाहते हैं।
જવાબ : श्रीकृष्ण को रिझाने के लिए गोपियाँ श्रीकृष्ण के तरह-तरह के स्वाँग करना चाहती हैं। वे श्रीकृष्ण की तरह अपने सिर पर मोर-पंख धारण करना चाहती हैं, गुंजों की माला गले में पहनना चाहती हैं तथा पीतांबर ओढ़कर और हाथ में लाठी लेकर गायों के पीछे ग्वालों के साथ-साथ वन में भटकना चाहती हैं।
જવાબ : गोपियों का श्रीकृष्ण से निश्छल प्रेम है। वे नहीं चाहतीं कि श्रीकृष्ण की मुरली को वे अपने अधरों पर रखकर जूठी करें। वे इस चेष्टा को अपने प्रिय के साथ विश्वासघात मानती हैं।
જવાબ : रसखान श्रीकृष्ण और उनकी लीला-स्थली से अभिभूत हैं। वे हर उस चीज से सामीप्य चाहते हैं, जिनका संबंध श्रीकृष्ण से रहा है। वे अगले जन्म में गोकुल गाँव में जन्म लेकर वहाँ के ग्वालों के बीच उसी तरह रहना चाहते हैं; जेसे कृष्ण रहते थे। वे पशु के रूप में जन्म लेकर नंद की गायों के बीच चरना चाहते हैं। श्रीकृष्ण बचपन में नंद की गाएँ चराने जाया करते थे। पक्षी के रूप में जन्म लेकर रसखान कदंब के वृक्षों पर रैन-बसेरा करना चाहते हैं। यमुना के किनारे कदंब के पेड़ों पर चढ़कर बचपन में श्रीकृष्ण ग्वाल-बालों के साथ खेला करते थे। यदि अगले जन्म में वे पत्थर बनें, तो उसी पहाड़ का पत्थर बनने की कामना करते हैं, जिसे श्रीकृष्ण ने अपने हाथों से उठा लिया था, यानी जिसका उन्होंने स्पर्श किया था।
જવાબ : रसखान की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य श्रद्धा है। वे हर हालत में श्रीकृष्ण के समीप रहना चाहते हैं। इसके लिए वे उन वस्तुओं की अभिलाषा करते हैं, जिनका संबंध श्रीकृष्ण से रहा है। नंद की गायों को चराने के सुख को वे आठों सिद्धियों एवं नौवों निधियों से भी बढ़कर मानते हैं। इसे पाने के लिए वे इन्हें सहर्ष छोड़ने को तैयार हैं। श्रीकृष्ण लाठी और कमली लेकर वन में गाएँ चराने जाया करते थे। इस लाठी और कमली पर वे आकाश, पाताल ओर मृत्यु लोक - तीनों लोकों के राज्य को भी तुच्छ मानते हैं और उसे खुशी-खुशी छोड़ने को तैयार हैं। कवि रसखान को व्रज की काँटेदार झाड़ियों के लिए सोने से बने करोड़ों महलों को भी न्योछावर करने के लिए तैयार हैं। इतना ही नहीं, वे व्रज जिन वनों, बगीचों ओर सरोवरों का संबंध श्रीकृष्ण से रहा है, उन्हें देखने की उनके मन में बड़ी अभिलाषा है।
જવાબ : कृष्ण की मुरली की धुन की व्रज की स्त्रियाँ दीवानी थी। श्रीकृष्ण ने अपनी मुरली की मनमोहक तान से व्रज की समस्त स्त्रियाँ को रिझा लिया था। अपनी मुरली की धुन से जैसे उन्होंने व्रज की स्त्रियाँ पर कुछ ऐसा जादू-टोना-सा कर दिया था कि वे उनके ह्र्दय में घर कर गए थे। हालत ऐसी हो गई थी कि किसी को किसी की परवाह नहीं थी। व्रज के सारे स्त्री-पुरुष कृष्ण की मुरली की धुन पर मुग्ध हो गए थे।
જવાબ : कवि रसखान के मन में श्रीकृष्ण के प्रति अपार श्रद्धा है। वे अपने आराध्य देव के प्रति समर्पित हैं। श्रीकृष्ण का लकुटी और कमली लेकर गायों को चराने के लिए वन में जानेवाला रूप उनके मन में समाया हुआ है। श्रीकृष्ण के उस रूप का दर्शन करने के लिए वे तीनों लोकों के राज्य को न्योछावर करने को तत्पर हैं। श्रीकृष्णने नंद की जिन गायों को चराया था, वे उन गायों को चराकर अद्भुत सुख प्राप्त करना चाहते हैं। इस सुख के सामने वे आठों सिद्धियों और नौवों निधियों को भी तुच्छ मानते हैं। नंद की गायों को चराने के सुख के सामने वे इन सिद्धियों और निधियों को न्योछावर करने को तैयार हैं। वे व्रज के लता, कुंज एवं पेड़-पौधों का दर्शन करने के लिए बेचैन हैं। इतना ही नहीं, वे व्रज की कँटीली झाड़ियों को भी सोने से बने महलों से मूल्यवान मानते हैं और उनके सामने वे सोने के करोड़ो महलों को न्योछावर करते हैं। |
જવાબ : रसखान ने श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम को बड़े सुंदर ढंग से प्रकट किया है। गोपियाँ श्रीकृष्ण से इतना प्रेम करती हैं कि वे उनकी हर वस्तु धारण करने के लिए लालायित हैं। वे अपने गले में वे गुंजों की माला पहनेंगी। वे श्रीकृष्ण की तरह अपने सिर पर मोरपंख धारण करेंगी। पीले रंग का वस्त्र ओढ़कर और हाथ में लाठी लेकर वे श्रीकृष्ण के ग्वाल-वेश को धारण क़रेंगी। इतना ही नहीं, वे गायों और ग्वालों के साथ-साथ बन में भी भटकेंगी। श्रीकृष्ण के सारे रूप धारण करना उन्हें स्वीकार है, पर उनकी मुरली को वे कभी अपने होंठों पर नहीं रखेंगी। अपने होंठों पर श्रीकृष्ण की मुरली को रखकर उसे जूठा करके वे अपने आराध्य कृष्ण का अनादर नहीं करना चाहतीं।
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