જવાબ : सदगुरु
જવાબ : कुलनाशिनी
જવાબ : विष का प्याला
જવાબ : साधु-संत
જવાબ : मीराने मगन होकर विष पी लिया
જવાબ : अपने आँसूसे
જવાબ : गिरधर गोपाल
જવાબ : जगत
જવાબ : रामरूपी रत्नका धन
જવાબ : अपने सतगुरु
જવાબ : साधु संग बेठकर
જવાબ : रामरतन धन पाया।
જવાબ : वे उन्हें ही भगवदभक्ति प्राप्त करने का आधार मानती हैं।
જવાબ : भगत
જવાબ : सतकी नावमें बेठकर
જવાબ : विषका प्याला
જવાબ : मीरा पागल हो गयी है
જવાબ : नारायणकी
જવાબ : मीरा कुलनासी है
જવાબ : मीरां ने साधुसंतों के साथ बेठकर लोक-लाज खोई।
જવાબ : श्रीकृष्ण के प्रेम में लीन होकर मीरां पैरों में घुँधरू बाँधकर नाचती थी, राणाजी को यह पसंद नहीं था।
જવાબ : मीरां की सास मीरां को कुलनाशिनी कहती थी।
જવાબ : श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए मीरां ने अपने भाई, बंधु परिवारजनों ओर सगे-संबंधियों से रिश्ता तोड़ लिया।
જવાબ : मीरां के लिए सदगुरु खेवनहार के समान है
જવાબ : साधु-संतों
જવાબ : भगत
જવાબ : जगत
જવાબ : आँसुओं से
જવાબ : रामरतन धन
જવાબ : सदगुरु
જવાબ : नारायण
જવાબ : श्रीकृष्ण
જવાબ : रामरतन धन
જવાબ : कुलनाशिनी
જવાબ : राणा
જવાબ : मीरांबाई ने श्रीकृष्ण को अपने जीवन का एकमात्र आधार बना लिया था। इसके लिए उन्होंने अपना सर्वस्व त्याग दिया था। उन्होंने अपने भाई, बंधु, परिवार तथा नाते-रिश्ते के सभी लोगों का त्याग कर दिया था।
જવાબ : मीरांबाई ने अपने सदगुरु की कृपा से 'रामरतन धन' नामक अमूल्य वस्तु प्राप्त की थी। मीरांबाई उसे अपने जन्म-जन्मांतर की पूँजी मानती हैं। इस धन की ये विशेषताएँ हैं कि यह न तो खर्च होता है और न कोई चोर इसे चुरा सकता है। इसमें रोज-रोज सवाई वृद्धि होती है।
જવાબ : मीरांबाई को अपने सदगुरु पर अपार श्रद्धा है। वे उन्हें ही भगवदभक्ति प्राप्त कराने का आधार मानती हैं। वे सत्य (सच्चाई) की उस नाव पर बैठकर भवसागर पार करना चाहती हैं, जिसके खेवनहार उनके सदगुरु होंगे।
જવાબ : मीरां कृष्ण की भक्त थीं। कृष्ण के भक्ति में डूबकर मीराने सारी दुनियादारी भुला दी थी। मीरा कृष्ण की भक्ति में दीवानी हो गई थीं। राणाजी को यह सब पसंद नहीं आया। उन्होंने मीरा को जान से मारने के लिए जहर से भरा हुआ प्याला उनके पास भेजा। मीरां ने बिना विचलित हुई यह जहर हँसते-हँसते पी लिया। पर इस जहर का मीरां पर कोई असर नहीं हुआ।
જવાબ : मीरां कृष्ण के प्रेम में पड़कर संसार से विरक्त हो गई थीं। उन्होंने संसार के नियमों और मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की। मीरा को पैरो में घुंघरू बाँधकर नाचते देख लोगों ने उन्हें पागल तक कहा। मीरा साधु-संतों के साथ बेठी देखकर लोगों ने उनकी हँसी उड़ाई। सास को उनकी भक्ति भावना बिलकुल अच्छी नहीं लगी। उन्होंने उनका 'कुलनाशिनी' कहकर तिरस्कार किया। राजा को मीरां का रंग-ढंग राज परिवार के खिलाफ लगा ओर उन्होंने मीरां को जहर देकर मारने की कोशिश की। इस प्रकार कृष्णभक्ति में डूबने पर मीरां को तरह-तरह के दुःख उठाने पड़े।
જવાબ : गुरु का महत्व सभी ने माना है। मीरांबाई ने सदगुरु को बहुत महत्व दिया है। मीरां सांसारिक जीवन को त्यागकंर अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण की भक्ति पाकर मगन हैं वे इसे रत्न की उपमा देती हैं। वे इस अनमोल वस्तु को प्राप्त कराने का श्रेय अपने सदगुरू को ही देती हैं और कहती हैं कि 'रामरतनरूपी वन’ उन्हें उनके सदगुरु की कृपा से प्राप्त हुआ है। सदगुरु की कृपा इस खंसाररूपी सागर में नाव के समान है। इस नाव में बैठकर मीरां सुरक्षित रूप से इस भवसागर को पार करने के प्रति निश्चिंत हैं, क्योंकि इस नाव के खेवनहार उनके सदगुरु होंगे। इस प्रकार मीरां के पद में सदगुरु को बहुत महत्व दिया गया हे।
જવાબ : भक्ति में लीन मीरां को देख लोग तरह-तरह की बाते करते थे। मीरांबाई श्रीकृष्ण के प्रेम में रँगते-रँगते संसार के प्रति विमुख हो गई थीं। उन्होंने सांसारिकता को बिलकुल भुला दिया था। मीरा श्रीकृष्ण के प्रेम में पेरों में धुँघरू बाँधकर नाचती थीं। यह देखकर लोग उन्हे 'पागल' कहने लगे थे। वे साधुओं की संगति में बैठती थीं। यह देखकर लोग उनकी खिल्ली उड़ाया करते थे। उनकी सास और राणा को मीरां का भक्तिभाव बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। इसलिए सास उन्हें 'कुलनाशिनी' कहती थी और राणा को लगता था कि ऐसे प्राणी को जीवित ही नहीं रहना चाहिए। इसलिए उन्होंने मीरां को जान से मारने के लिए विष का प्याला ही भेज दिया था।
इस प्रकार भक्तिभाव में लीन मीरां को लोग तरह-तरह से संबोधित करते थे।જવાબ : मीरांबाई अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण के प्रेम की दीवानी हैं। उन्हें प्राप्त करने के लिए उन्होंने अपने भाई, बंधु, परिवारजनों और सभी सगे-संबंधियों से रिश्ता तोड़ लिया है। उन्होंने तरह-तरह की बदनामियाँ सही हैं और लाज-शर्म सबको तिलांजलि दे दी है। कहने का अर्थ यह है कि उन्होंने अपना सर्वस्व गँवाकर अपने जन्म-जन्मांतर की राम नामरूपी अमूल्य पूँजी प्राप्त की है। यह ऐसी पूँजी है जिसका कोई जोड़ नहीं है।
જવાબ : सच्चाई मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से अपने आराध्य देव का ध्यान करे और उसे सदगुरु का सहयोग प्राप्त हो, तो व्यक्ति को भवसागर से मुक्ति पाना कठिन नहीं है। मीरांबाई को अपने सदगुरु पर अटूट विश्वास है। उनके लिए सद्गुरु की कृपा इस संसाररूपी महासागर में नाव के समान है। इस नाव के सहारे वे सुरक्षितरूप से इस भवसागर को पार कर लेगी, इस बात का उन्हें पूरा विश्वास है।
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