જવાબ : द्रव्य-भक्ति
જવાબ : सोना
જવાબ : पैसों की खोज नहीं हुई थी तब तक
જવાબ : नर कंकाल
જવાબ : पवित्रतापूर्वक जीना
જવાબ : जब तृष्णाएं बढ़ जाती है तब
જવાબ : तृष्णा
જવાબ : जब द्रव्य भक्ति बढ़ जाती है तब
જવાબ : पैसों से भरी एक थेली
જવાબ : धन
જવાબ : सोना
જવાબ : त्याग से
જવાબ : जब लोग अमीर बनने की कृत्रिम चाव में फँसता है तब
જવાબ : वनस्पतिशास्त्र का ग्रंथ
જવાબ : वनस्पतियों की
જવાબ : स्वयं खून-पसीना एक करके
જવાબ : स्वाभिमान
જવાબ : शैतान
જવાબ : देवदूत
જવાબ : भोगने के बाद फेंक देना
જવાબ : धन
જવાબ : जब तक पैसे की खोज नहीं हुई थी
જવાબ : दूसरों को उल्लू बनाकर
જવાબ : सिर्फ बाहर ही नहीं, अंदर से अमीर बनना
જવાબ : सोक्रेटिस
જવાબ : सम्मान मिलना मुश्किल होता है।
જવાબ : गरीब बुनकर का पुत्र था।
જવાબ : एक-दूसरे के विपरीतार्थक शब्द है।
જવાબ : धनोपार्जन में लगा है।
જવાબ : तब वे अंत:करण की अमीरी की सुगंध खो देते हैं।
જવાબ : परिबल
જવાબ : प्रशंसा
જવાબ : डाकू का
જવાબ : परंपरागत डाकूरानी
જવાબ : डंकन
જવાબ : तृष्णा
જવાબ : स्कॉटलैंड
જવાબ : बुनकर
જવાબ : सोलह
જવાબ : द्रव्य-भक्ति
જવાબ : सोना
જવાબ : डंकन
જવાબ : धन
જવાબ : उल्लू
જવાબ : खून-पसीना
જવાબ : जब लोग अमीर बनने के कृत्रिम चाव में फँस जाते हैं, तब वे अंतःकरण की अमीरी की सुगंध खो देते हैं।
જવાબ : धन सुख का जादूगर और शांति का डकैत है।
જવાબ : आज जीवन का नियंत्रक परिबल धन है।
જવાબ : लेखक के अनुसार अमीर दूसरों को उल्लू बनाकर धन कमाता है।
જવાબ : गरीब को पेट भरने के लिए अन्न की जरूरत होती है।
જવાબ : जब तक पैसों की खोज नहीं हुई थी, तब तक मनुष्य अमीर था।
જવાબ : पोम्पीनगर के खंडहरों में से नर-कंकाल की मुट्ठी में सोना मिला।
જવાબ : वनस्पति-विज्ञान के महान पंडित का नाम जॉन डंकन था।
જવાબ : तृष्णाएँ बढ़ने पर मनुष्य की नेकी समाप्त हो जाती है
જવાબ : तृष्णा परंपरागत डाकूरानी है।
જવાબ : डाकू का उद्देश्य किसी भी प्रकार से दूसरे का माल-असबाब लूटना होता है, इसी तरह अप्राप्य वस्तु को पाने की तीव्र इच्छा तृष्णा का उद्देश्य भी येन-केन प्रकारेण वांछित वस्तु पाना है। इसमें इन्हें कोई बुराई नजर नहीं आती। इस तरह डाकू और तृष्णा में कोई अंतर नही होता, इसीलिए तृष्णा को परंपरागत डाकूरानी कहा गया हे।
જવાબ : तृष्णातुर मनुष्य की तृष्णा अंतिम साँस तक उसका पीछा करे रहती है, यह तृष्णापूर्ति धन से होती है। व्यापारी के मन में अंतिम समय तक अपनी इच्छाओं की पूर्ति की उम्मीद थी। इसलिए अंतिम साँस लेते समय भी रुपयों की थैली उसने मजबूती से हाथ में पकड़ रखी थी।
જવાબ : आज वास्तविक धन मनुष्य के सहदयता, आत्मीयता, आशा, उल्लास तथा प्रेम आदि गुणों में हैं। इन गुणों के द्वारा जो धन प्राप्त होता है, वह चिरस्थायी होता है। जबकि द्रव्य के रूप में कठिन परिश्रम से अर्जित किया गया धन स्थायी नहीं होता।
જવાબ : आधुनिक जीवन में धन जीवन को नियंत्रित करनेवाली शक्ति होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति धनोपार्जन में व्यस्त है। गरीब अपनी जीविका चलाने के लिए तो अमीर अधिक अमीर बनने धन कमाने में जुटे हुए है। इसलिए आज मनुष्य की वृत्ति और प्रवृत्ति दोनों ही भ्रष्ट हो गई हैं।
જવાબ : डंकन एक गरीब बुनकर के पुत्र होने के बावजूद अपनी प्रबल इच्छाशक्ति से वनस्पतिशास्त्र के विद्वान बने। उनकी प्रतिभा और खराब आर्थिक स्थिति को देखकर अनेक लोगों ने उनको बड़ी-बड़ी रकम के चैक भेजे वह पैसे डंकन ने प्राकृतिक विज्ञान के विधार्थियों के कल्याण में लगा दिये। उनके जीवन से यह संदेश मिलता है कि धन का उपयोग गरीबों की सहायता तथा अच्छे कार्यों के लिए करना चाहिए।
જવાબ : पोम्पीनगर के खंडहरों में खुदाई करते समय एक नर-कंकाल मिला था। उसकी मुट्ठी को बड़ी मुश्किल से खोला जा सका। मुठ्ठी खुलने पर पता चला कि मृत व्यक्ति की मुट्ठी में सोना था। ठीक इसी प्रकार इसी शहर के एक व्यापारी ने अपनी अंतिम साँस लेते समय तकिए के नीचे से पैसों से भरी हुई थेली बाहर निकली थी। जब तक उसके प्राण निकल नहीं गए, तब तक उसने उसे मजबूती से पकड़ रखा था। इससे उनमें धन के प्रति मोह की भावना दिखाई देती है, जिन्हें वे हंमेशा सँभालकर रखना चाहते थे।
જવાબ : डंकन स्कॉटलैंड में रहनेवाले एक गरीब बुनकर का पुत्र था। वह अनपढ़, अशक्त, कुबड़ा और कंगाल परिवार से था। जब वह अपने मुहल्ले में से गुजरता था तब बच्चे उसे चिढा ते थे। वह ढोर चराने का काम करता था और उसका मालिक उस पर बहुत अत्याचार करता था। सोलह साल की उम्र में उसने मूलअक्षर सीखना शुरू किया था। फिर वह जल्दी-जल्दी पढ़ना लिखना सीखता गया। जंगल में घूमने के कारण उसे पहले से वनस्पतियों की जानकारी थी। उसने वनस्पतिशास्त्र का ग्रंथ खरीदकर वनस्पतिशास्त्र का गहरा अध्ययन किया और इस विषय का महापंडित बन गया।
જવાબ : भारत में अनेक महापुरुष हुए हैं। उन्होंने गरीबी, अभाव और कठिनाइयों में अपने जीवन की शुरुआत की थी। इसके बावजूद उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में अपना मूल्यवान योगदान दिया है। धन की समस्या उनके आड़े कभी नहीं आई। धन के लिए उन्होंने कभी ऐसा कोइ काम नहीं किया, जिससे उनको लज्जित होना पड़ा हो। धन के लालच में उन्होंने कभी अपनी नीयत खराब नहीं की। उनके प्रदेय जग-जाहिर हैं। अभावों और कठिनाइयों से जूझकर उन्होंने ऐसे कार्य कर दिखाए, जिनके बल पर वे महापुरुष कहलाए। इसीलिए उन्हें कीचड़ में से लिकलनेवाले कमल कहा गया है।
જવાબ : आदमी धन कमाने पर श्रीमंत अथवा अमीर बनता है। उससे वह दुनिया में सम्मानपूर्वक जीना चाहता है। लेकिन केवल धन से ही आदमी को सम्मान मिलना मुश्किल होता है। आदमी को सम्मान तभी मिलता है, जब वह बाहर और अंदर दोनों से धनवान बने। अर्थात् व्यक्ति को ऊपर से श्रीमंत होने के साथ-साथ उदार भी होना चाहिए। उसे अपने धन से गरीबों और असहाय लोगों की सहायता करनी चाहिए। तभी आदमी बाहर और अंदर दोनों से श्रीमंत कहा जा सकता है। तभी उसके पैसे का सदुपयोग होता है। जब वह बाहर-अंदर दोनों तरफ से श्रीमंत या अमीर होता है, तभी वह अपने पैसे का सही उपयोग करने में समर्थ होता है। पैसा पचाने यानी उसका सदुपयोग करने की यही कला है।
જવાબ : डाकू का उद्देश्य केवल एक ही होता है। धावा बोलकर किसी भी कीमत पर दूसरे का माल-असबाब लूट लेना। इसमें उसे कोई बुराई नजर नहीं आती। अप्राप्य वस्तु को पाने की तीव्र इच्छा का नाम तृष्णा है। इस स्थिति में भी मनुष्य येन-केन प्रकारेण वांछित वस्तु पा लेने का दुर्गम प्रयास करता है और उसमें भलाई-बुराई का विवेक नहीं रह जाता। इस तरह किसी डाकू और तृष्णा में कोई अंतर नहीं होता। इसीलिए तृष्णा को परंपरागत डाकूरानी कहा गया है।
જવાબ : जॉन डंकन स्कॉटलैंड के रहनेवाले एक गरीब बुनकर के पुत्र थे। अपनी प्रबल इच्छाशक्ति और प्रयास से वे वनस्पतिशास्त्र के महापंडित बन गए। उनकी प्रतिभा और खराब आर्थिक स्थिति को देख कर अनेक लोगों ने उन्हें बड़ी-बड़ी रकम के चैक भेजे। पर डंकन ने उस धन का उपयोग अपने लिए कभी नहीं किया। उन्होंने यह सारा धन प्राकृतिक-विज्ञान का अध्ययन करनेवाले गरीब विधार्थियों की सहायता, स्कॉलरशिप तथा पारितोषिक के लिए दान कर दिया। उनके जीवन से यह संदेश मिलता है कि धन का उपयोग गरीबों की सहायता तथा अच्छे कार्यों के लिए करना चाहिए।
જવાબ : सुखमय जीवन जीने के लिए धन बहुत जरूरी है। धन से तरह-तरह की सुख-सुविधा की चीजें खरीदी जा सकती हैं। मनुष्य जादु की गति से ऐशो-आराम की जिंदगी जी सकता है। पर धन का एक दोष भी है। धन आने पर मनुष्य की अधिक-से-अधिक धन प्राप्त करने की तृष्णा बढ़ती जाती है। वह किसी भी तरह से अधिक-से-अधिक धन एकत्र करने का प्रयास करने में जुट जाता है। इससे मनुष्य की शांति गायब हो जाती है। उसका मन अशांत हो जाता है। वह धन के पीछे पागलों की तरह भागने लगता है। इसीलिए कहा गया है कि 'धन सुख का जादूगर भी है और शांति का डकैत भी।'
જવાબ : त्याग और भोग एक-दूसरे के विपरीतार्थक शब्द हैं। पहले हमारे देश में त्याग की भावना प्रमुख थी। हमारे देश के महापुरुषो त्याग का मार्ग अपनाया था और उन्होंने देश और समाज के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया था और अपना सर्वस्व त्याग दिया था। उन्होंने अपने महान लक्ष्य के लिए यह व्रत अपनाया था और उसके पूर्ति होने पर उनके आनंद की कोई सीमा नहीं होती थी। आज भी उनकी प्रवृत्ति का जोर है। आज के अमीरों में यह प्रवृत्ति धड़ल्ले से फल रही है। महंगे वस्त्रों और गहनों के भोंडे प्रदर्शन इसके सबूत हैं।
જવાબ : आज के जमाने में धन बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। चाहे छोटा काम हो या बड़ा, बिना धन के उसे पूरा नहीं किया जा सकता गरीब आदमी को अपना और अपने परिवार का पेट पालने और सर ढकने के लिए धन की आवश्यकता होती है। अमीर आदमी को भी अधिक अमीर बनने के लिए धन की जरूरत होती है। आज के मनुष्य की वृत्ति और प्रवृत्ति दोनों ही भ्रष्ट हो गई हैं। इस तरह आज धन जीवन का नियंत्रक परिबल बन गया है।
જવાબ : प्रत्येक मनुष्य में अच्छाई और बुराई दोनों प्रवृत्तियाँ होती हैं। यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह इन दोनों में से क्या अपनाए। दानशीलता और दूसरों की भलाई करने से बड़ा और कोई काम नहीं होता। सभी लोंग भलाई करनेवाले व्यक्ति की प्रशंसा करते हैं, जबकि बुराई किसी को पसंद नहीं आती। बुराई से कोई व्यक्ति अपार धन-संपति क्यों न अर्जित कर ले, पर समाज में उसे अच्छे व्यक्ति के रूप में मान्यता कभी नहीं मिलती है। बुरे कार्यों से अर्जित धन में शैतानियत की झलक मिलती है। इस तरह नीच कर्म से मनुष्य शैतान ही बनता है, जबकि अपने सद्कर्मों से मनुष्य को देवदूत के रूप में प्रतिष्ठा मिलती है।
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